tag:blogger.com,1999:blog-538424075577469216.post4431699266363601999..comments2023-10-18T08:27:55.315-07:00Comments on दस्तक: दिल बनाम दिमागदस्तकhttp://www.blogger.com/profile/01936017523095891153noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-538424075577469216.post-47324951598416496872017-02-10T03:25:30.680-08:002017-02-10T03:25:30.680-08:00आप 1 काम कर सकते हो :-
आप दोनों 1 दिन साथ मिलने ...आप 1 काम कर सकते हो :-<br />आप दोनों 1 दिन साथ मिलने की मीटिंग रखना और मीटिंग में 1 गेम खेलना <br />:- इसमें आप एक - दूसरे की 5 - 5 बुराईया बताना और 5 - 5 अच्छाईया बताना <br />और उन बुराइयो को दूर करने की कोशिस करना |<br />में कामना करता हु की आपकी यह प्रॉब्लम सॉल्व हो जाये. Ronak Sankhalahttps://www.blogger.com/profile/14283949582882387868noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-538424075577469216.post-61815558035243861482011-01-29T22:15:48.682-08:002011-01-29T22:15:48.682-08:00dear isha!
the above incidence in pretty realistic...dear isha!<br />the above incidence in pretty realistic we all come across thing. story is same but the charater get change.you have to understand that we cud never be hero in story of life but we cud have to play vilion sumtimes and we cudnot aviod it.<br />exchange ur situtaion with ur friend.<br />you will find the right solution.<br />hum sb ek rangmanch ke patra hain.<br />apna patra badlo swayn nirnay lo.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-538424075577469216.post-34791116302008200682010-11-15T22:35:31.571-08:002010-11-15T22:35:31.571-08:00@ saumitra,डॉ. पुरुषोत्तम ji, yashwant ji....aap s...@ saumitra,डॉ. पुरुषोत्तम ji, yashwant ji....aap sabhi ki baat kahin na kahin thik hai, aur main bhi apna rishta dil se hi nibha rhi thi..par achaanak agar dimag kisi satya tathya ko jaankar kuch keh rha hai to use bhi to andekha nahi kiya jaa sakta aur is dimag ke saath hi saath dil hai ki dimag ki manne ko tayaar hi nahi..!दस्तकhttps://www.blogger.com/profile/01936017523095891153noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-538424075577469216.post-11885626059123640252010-11-15T20:45:25.617-08:002010-11-15T20:45:25.617-08:00पुरषोत्तम जी की टिप्पणी के बाद कुछ कहने को बाकी नह...पुरषोत्तम जी की टिप्पणी के बाद कुछ कहने को बाकी नहीं रहा.उनकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ.Yashwant R. B. Mathurhttps://www.blogger.com/profile/06997216769306922306noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-538424075577469216.post-20161548046133523822010-11-15T19:27:05.871-08:002010-11-15T19:27:05.871-08:00आदरणीया,
सर्व प्रथम तो आपको इस बात का धन्यवाद कि ...आदरणीया,<br /><br />सर्व प्रथम तो आपको इस बात का धन्यवाद कि आपने मेरे ब्लॉग बासवोइस.ब्लॉगस्पोट. कॉम पर अपनी दस्तक दी।<br /><br />आपने लिखा है कि मेरे आलेख (आपने पुलिस के लिये क्या किया है?) को पढने से आपकी सोच में भी फर्क पडा है। यह जानकर मेरा लेखन सफल हो गया।<br /><br />आपका ब्लॉग पढा और "दिल बनाम दिमाग" शीर्षक से आपने कुछ सलाह मांगी हैं।<br /><br />सबसे पहले तो आपको यह कहना चाहूँगा कि आपको लगातार लेखन जारी रखना चाहिये। आप में लेखन का हुनर और जज्बा दोनों प्रतिबिम्बित हो रहे हैं।<br /><br />दूसरी आपने कुछ सलाह मांगी है। मैं बतौर सलाहकार करीब दो दशक से लोगों की सेवा कर रहा हूँ। मेरा मानना है कि तथ्यों को जाने बिना दी जाने वाली सलाह कभी भी समाधानकारी सिद्ध नहीं हो सकती हैं। <br /><br />इसलिये जितना आपने बतलाया है, उससे केवल आपके और आपकी मित्र के कोमल अहसासों का तो पता चलता है, लेकिन असल समस्या क्या है? इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है।<br /><br />चूँकि आपने स्वयं ही लिखा है कि इकतरफा रास्ता सुझाएँ। सुझाने को तो कुछ भी सुझाया जा सकता है, लेकिन गलत या सन्देहास्पद रास्ता सुझाना अनैतिक और अन्यायपूर्ण है, किसी के जीवन से खेलना है।<br /><br />इसके उपरान्त भी मैं कुछ कहना चाहूँगा हो सकता है कि ये बातें आपके लिये उपयोगी हों। मैं एक लेखक हूँ और आप भी लेखन से जुडी हैं, इसलिये आशा करता हूँ कि आप लेखन के महत्व को समझती होंगी।<br /><br />एक लेखक को किसी पुस्तक को लिखने में किन-किन हालातों से गुजरना प‹डता है और पुस्तक लिखने में कितनी मानसिक एवं शारीरिक ऊर्जा खर्च करनी प‹डती है। तब जाकर कोई किताब लिखी जाती है, लेकिन उस किताब को माचिस की एक तिल्ली से कुछ ही समय में जलाया जा सकता है।<br /><br />मेरा अनुभव है कि मित्रता भी पुस्तक लिखने की तरह है, जिसमें वर्षों लग जाते हैं, जबकि मित्रता को तो‹डने के लिये एक घटिया बात ही पर्याप्त होती है। इसीलिये सुप्रसिद्धि शायर गालिब ने कहा है कि-<br /><br />दुश्मनी जमकर करो, मगर इतनी गुजाइश रहे,<br />फिर कभी दोस्त बन जायें तो शर्मिन्दा न हों।<br /><br />इसलिये अब फिर से दोस्ती की आकांक्षा है तो (जैसा कि आपने लिखा भी है) अपनी अनचाही दुश्मनी में भी इतनी गुंजाइश जरूर रखना कि फिर कभी दोस्ती हो जाये आँखे मिलाते समय शर्मिन्दगी नहीं उठानी पडे।<br /><br />शुभकामनाओं सहित।<br /><br />डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'<br />फोन : 0141-2222225 (सायं : 07 से 08 बजे तक)<br />E-mail : dplmeena@gmail.com<br />---------------------------यदि बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे?-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'/ Dr. Purushottam Meena 'Nirankush'-सम्पादक-PRESSPALIKA, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान, Mob : 98285-02666https://www.blogger.com/profile/01854980253449056926noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-538424075577469216.post-70855186477746238042010-11-15T11:32:53.127-08:002010-11-15T11:32:53.127-08:00"FURSATAIN MILAIN JAB BHI, RANJISHAIN BHULA D..."FURSATAIN MILAIN JAB BHI, RANJISHAIN BHULA DENA, KON JAANE SAANSON KI MOHLATEIN KAHAN TAK HAIN"<br />ISHA JI DOSTI KA RISHTA DIL SE HI SURU HOTA HAI AUR USME DIMAG KA KOI INVOLVEMENT NAHI HOTA DIMAG KE LIYE DUNIYA ME BAHUT SE KAAM HAI ISE AAP APNE DIL PAR HE CHOD DE.....Saumitra vermahttps://www.blogger.com/profile/12130107718979378847noreply@blogger.com