Saturday, April 10, 2021

आजकल मैं कुछ थकी थकी सी हुँ 

वक़्त चल रहा हैं लेकिन मैं थमी सी हुँ


ना जाने सारा दिन मैं क्या सोचती हुँ 

खुद ही के भीतर मैं क्या खोजती हुँ 


पंख लगा कर आसमां को छूना चाहती हुँ 

चाँद और सितारों से बतियाना चाहती हुँ 


कभी पानी की तेज़ कलकलाहट सुनना चाहे दिल 

कभी नाचते मयूरो को देख मन जाये खिल 


कभी मुझे वो फूलो की बगिया लुभाती हैं 

जिन पर रंग बिरंगी तितलियाँ मंडराती हैं 


कभी लगे मैं फिर बच्ची हो जाऊ 

बिन बात के रोउ और खूब खिलखिलाऊ 


माँ को अपनी कसकर गले लगाऊ 

गोद में उनकी रख कर सिर, मैं सुकून से सो जाऊ 


क्यूंकि आजकल मैं कुछ थकी थकी सी हुँ 

वक़्त चल रहा हैं लेकिन मैं थमी सी हुँ