Monday, October 17, 2011
Saturday, October 8, 2011
क्या करे ?
जो दिल में बसते हो आपके
वहां रहना ही ना चाहे,
तो क्या करे ?
जब सवालों की गठरी
भारी होती जाए
जवाब ना मिले,
तो क्या करे ?
जब मद्धम आवाज़
सुनना चाहे दिल
सिर्फ रूदन सुनाई पड़े,
तो क्या करे ?
जब दर्द शब्दों में
बयां करना चाहे
और होठ कपकपाये
तो क्या करे ?
पलकों में बसा
रखे हो आंसू
आँखे बरसने ना पाए
तो क्या करे ?
जब ठहरना चाहे
किसी मुकां पे
आंधी में पत्ते की तरह
उड़ते चले जाए
तो क्या करे ?
जब सुकूं की तलाश हो
रूह थरथराती ही जाए
तो क्या करे ?
जब किसी के
कदमो के निशाँ
कैद करना चाहे
लहरें उसे मिटाती
चली जाए
तो क्या करे ?
जब तस्वीर कोई उकेरने
को दिल करे
कलम साथ ही ना दे
तो क्या करे ?
जब वक़्त को थामना चाहे
और लम्हा अहिस्ता अहिस्ता
गुज़रता चला जाए
तो क्या करे ?
जो आपकी हसी पे
मरते थे कभी
आपकी मौत की
खबर पर मुस्कुराए
तो क्या करे ?
वहां रहना ही ना चाहे,
तो क्या करे ?
जब सवालों की गठरी
भारी होती जाए
जवाब ना मिले,
तो क्या करे ?
जब मद्धम आवाज़
सुनना चाहे दिल
सिर्फ रूदन सुनाई पड़े,
तो क्या करे ?
जब दर्द शब्दों में
बयां करना चाहे
और होठ कपकपाये
तो क्या करे ?
पलकों में बसा
रखे हो आंसू
आँखे बरसने ना पाए
तो क्या करे ?
जब ठहरना चाहे
किसी मुकां पे
आंधी में पत्ते की तरह
उड़ते चले जाए
तो क्या करे ?
जब सुकूं की तलाश हो
रूह थरथराती ही जाए
तो क्या करे ?
जब किसी के
कदमो के निशाँ
कैद करना चाहे
लहरें उसे मिटाती
चली जाए
तो क्या करे ?
जब तस्वीर कोई उकेरने
को दिल करे
कलम साथ ही ना दे
तो क्या करे ?
जब वक़्त को थामना चाहे
और लम्हा अहिस्ता अहिस्ता
गुज़रता चला जाए
तो क्या करे ?
जो आपकी हसी पे
मरते थे कभी
आपकी मौत की
खबर पर मुस्कुराए
तो क्या करे ?
Wednesday, October 5, 2011
वो पल अच्छे थे
वो पल अच्छे थे
जब तुम छत से
टपकते पानी को देख
मेरे सर पर अपना हाथ
रख लेते थे
शर्ट पहन के उसका
टूटा बटन
मुझसे टकवाते थे
रोज़ अपने हाथो से
मेरी मांग सजाते थे
मैं कौन सा रंग पहनू
मुझे बताते थे
मेरे हाथ की
अधजली रोटियाँ
स्वाद लेकर खाते थे
अपनी साईकिल पर बिठा
कर मुझे शहर घुमाते थे
घंटो साथ बैठ कर
मुझसे बतियाते थे
हर रात अपनी बाहों को
मेरा तकिया बनाते थे
मैं कभी नींद से जग जाऊ
सो तुम भी नहीं पाते थे
घबरा जाऊ जो मैं
मुझे गले लगाते थे
साथ बैठ कर मेरे
यादो की तस्वीर बनाते थे
मेरे बिना कुछ पल भी
अकेले रहने से सकुचाते थे
मेरी एक मुस्कान के लिए
सौ दर्द सह जाते थे
चंद सिक्को की तलाश में
तुम क्यूँ पड़ गये
वक़्त की दौड़ में
मुझे छोड़
क्यूँ आगे बढ़ गये
खड़ी हूँ मैं आज भी
उसी मोड़ पर
जानती हूँ लौटोगे तुम
जब जानोगे
वो पल ही अच्छे थे.
जब तुम छत से
टपकते पानी को देख
मेरे सर पर अपना हाथ
रख लेते थे
शर्ट पहन के उसका
टूटा बटन
मुझसे टकवाते थे
रोज़ अपने हाथो से
मेरी मांग सजाते थे
मैं कौन सा रंग पहनू
मुझे बताते थे
मेरे हाथ की
अधजली रोटियाँ
स्वाद लेकर खाते थे
अपनी साईकिल पर बिठा
कर मुझे शहर घुमाते थे
घंटो साथ बैठ कर
मुझसे बतियाते थे
हर रात अपनी बाहों को
मेरा तकिया बनाते थे
मैं कभी नींद से जग जाऊ
सो तुम भी नहीं पाते थे
घबरा जाऊ जो मैं
मुझे गले लगाते थे
साथ बैठ कर मेरे
यादो की तस्वीर बनाते थे
मेरे बिना कुछ पल भी
अकेले रहने से सकुचाते थे
मेरी एक मुस्कान के लिए
सौ दर्द सह जाते थे
चंद सिक्को की तलाश में
तुम क्यूँ पड़ गये
वक़्त की दौड़ में
मुझे छोड़
क्यूँ आगे बढ़ गये
खड़ी हूँ मैं आज भी
उसी मोड़ पर
जानती हूँ लौटोगे तुम
जब जानोगे
वो पल ही अच्छे थे.
Tuesday, October 4, 2011
मुझे चाहत है अब भी
साँसे चलती थी तब तुम ना थी
तुम्हारी चाहत थी
कब्र में दफ़न होने के बाद भी
चाहत हैं
तुम्हारे हाथ से छु कर
रखे दो फूलो की
जिनकी महक में मैं
तुम्हारी सुंगंध
को खुद में बसा लूँगा
आ जाना प्रिय
मैं फिर से देखूँगा
वो प्यार
जो मैंने अपने लिए
हर पल तुम्हारी आँखों में
महसूस किया
ना जानू तुम अपने एहसास
जान नहीं पाई या
कोई और बंधन तुम्हे रोका था
ये तो कह ना सकोगी तुम
प्यार ना था
क्या था वो
जब तुम अपने बालकनी में
कपडे सुखाने के बहाने
मेरा इंतज़ार करती थी
क्या था वो
जब तुम अपने रास्ते में
मुझे खड़ा देख कर
मुस्कुराती हुई
आगे बढ़ जाती थी
क्या था वो
जब जानते हुए की मैं ही हूँ
फोन उठा के
" कौन", " कौन", " कौन",
कहकर
अपनी मीठे स्वर का रस
मेरे कानो में घोल देती थी
क्या था वो
जब तुम बिना अपना नाम लिखे
वो खाली चिट्ठी मेरे घर भेज देती थी
क्या था वो
जब मेरे दरवाज़े के सामने से
गुजरते वक़्त
रुक कर मुझे खोजती थी
मैं बहार आ जाऊ इसलिए
अपनी पायल खनखाती थी
क्या था वो
जब मंदिर जाकर मेरे लिए
इश्वर से दुआ मांगती थी
हां! सुना है छुप छुप कर
मैंने तुम्हारी उन दुआओ को
छुप कर देखी हैं मैंने
तुम्हारी आँखों में
मुझे एक झलक
देख पाने की
बैचैनी
हां मैं जानता हूँ
तुम्हे प्यार हैं मुझसे
और जानता हूँ
समाज के डर से
कह ना पाई कभी
तुम्हारी इस ख़ामोशी को
सह पाने की मुझमे
और हिम्मत ना थी
पर चाहत है मुझमे अब
भी तुमसे मिलने की
प्रियतम! अब तुम
मंदिर के बहाने
घर से निकल कर
दो फूलो से महका
देना मुझे
मेरी कब्र पे
तुम्हारा स्पर्श
मुझे फिर से साँसे देगा
मुझे लगेगा जी रहा हूँ मैं
स्पर्श कर पा रहा हूँ
तुम्हारा प्यार
हां! मुझे चाहत है अब भी.
तुम्हारी चाहत थी
कब्र में दफ़न होने के बाद भी
चाहत हैं
तुम्हारे हाथ से छु कर
रखे दो फूलो की
जिनकी महक में मैं
तुम्हारी सुंगंध
को खुद में बसा लूँगा
आ जाना प्रिय
मैं फिर से देखूँगा
वो प्यार
जो मैंने अपने लिए
हर पल तुम्हारी आँखों में
महसूस किया
ना जानू तुम अपने एहसास
जान नहीं पाई या
कोई और बंधन तुम्हे रोका था
ये तो कह ना सकोगी तुम
प्यार ना था
क्या था वो
जब तुम अपने बालकनी में
कपडे सुखाने के बहाने
मेरा इंतज़ार करती थी
क्या था वो
जब तुम अपने रास्ते में
मुझे खड़ा देख कर
मुस्कुराती हुई
आगे बढ़ जाती थी
क्या था वो
जब जानते हुए की मैं ही हूँ
फोन उठा के
" कौन", " कौन", " कौन",
कहकर
अपनी मीठे स्वर का रस
मेरे कानो में घोल देती थी
क्या था वो
जब तुम बिना अपना नाम लिखे
वो खाली चिट्ठी मेरे घर भेज देती थी
क्या था वो
जब मेरे दरवाज़े के सामने से
गुजरते वक़्त
रुक कर मुझे खोजती थी
मैं बहार आ जाऊ इसलिए
अपनी पायल खनखाती थी
क्या था वो
जब मंदिर जाकर मेरे लिए
इश्वर से दुआ मांगती थी
हां! सुना है छुप छुप कर
मैंने तुम्हारी उन दुआओ को
छुप कर देखी हैं मैंने
तुम्हारी आँखों में
मुझे एक झलक
देख पाने की
बैचैनी
हां मैं जानता हूँ
तुम्हे प्यार हैं मुझसे
और जानता हूँ
समाज के डर से
कह ना पाई कभी
तुम्हारी इस ख़ामोशी को
सह पाने की मुझमे
और हिम्मत ना थी
पर चाहत है मुझमे अब
भी तुमसे मिलने की
प्रियतम! अब तुम
मंदिर के बहाने
घर से निकल कर
दो फूलो से महका
देना मुझे
मेरी कब्र पे
तुम्हारा स्पर्श
मुझे फिर से साँसे देगा
मुझे लगेगा जी रहा हूँ मैं
स्पर्श कर पा रहा हूँ
तुम्हारा प्यार
हां! मुझे चाहत है अब भी.
Monday, October 3, 2011
आग की लपट में
शीतलता पा रहा होगा
जब ये तन
तुम अपनी आँखों को
आंसुओ से मत जलाना
सिसकेगी मेरी आत्मा
जब कोई और
मेरे नाम का आंसू
तुम्हारे चेहरे से पोछेगा
इस संसार की सीमाओ
में साथ
ना रह सके तो क्या
बन के हवा का
खुशबूदार झोका
महकाऊँगा मैं तुम्हारा जीवन
मेरी चिता की अग्नि को
अपनी आँखों में
याद बना कर बसा लेना
देह की चुटकी भर राख से
अपनी मांग सजा लेना
याद करना मुझे जब भी
अपने कमरे के किवाड़ खोल लेना
आऊंगा मैं तुमसे मिलने
बैठूँगा वैसे ही
तुम्हारा हाथ थाम कर
धूप जब लगेगी मेरे चेहरे पर
तुम अपनी ओढनी से वैसे ही ढक लेना
फिर तुम्हारी गोद में सर रख कर
सो जाऊंगा
आता रहूँगा यूँ ही
हर बार तुमसे मिलने
बस तुम मेरे मिलन की चाह
को अपने दिल से कभी ना मिटाना.
शीतलता पा रहा होगा
जब ये तन
तुम अपनी आँखों को
आंसुओ से मत जलाना
सिसकेगी मेरी आत्मा
जब कोई और
मेरे नाम का आंसू
तुम्हारे चेहरे से पोछेगा
इस संसार की सीमाओ
में साथ
ना रह सके तो क्या
बन के हवा का
खुशबूदार झोका
महकाऊँगा मैं तुम्हारा जीवन
मेरी चिता की अग्नि को
अपनी आँखों में
याद बना कर बसा लेना
देह की चुटकी भर राख से
अपनी मांग सजा लेना
याद करना मुझे जब भी
अपने कमरे के किवाड़ खोल लेना
आऊंगा मैं तुमसे मिलने
बैठूँगा वैसे ही
तुम्हारा हाथ थाम कर
धूप जब लगेगी मेरे चेहरे पर
तुम अपनी ओढनी से वैसे ही ढक लेना
फिर तुम्हारी गोद में सर रख कर
सो जाऊंगा
आता रहूँगा यूँ ही
हर बार तुमसे मिलने
बस तुम मेरे मिलन की चाह
को अपने दिल से कभी ना मिटाना.
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