इंतज़ार है ये खुशियों का,
या गम के करीब जा रही हूँ,
उसको पाने की चाहत में,
खुद को भूले जा रही हूँ,
ना रात के चाँद का है एहसास,
ना सूरज का महसूस होता है ताप,
मैं बस बढ़ते जा रही हूँ,
ना जाने खो रही हूँ, पा रही हूँ,
हाँ ! लेकिन खुद को भूले जा रही हूँ,
मैं निश्चित खुद को भूल के बढ़ते जाऊँगी,
खुशिया मिली तो खिल खिलाऊँगी,
परन्तु गम में एक अश्क भी ना बहाऊँगी ,
वो मिला तो मंजिल मिल जाएगी,
अन्यथा उसका एहसास ही जिंदगी बन जाएगी,
यदि उसको पाना, खुद को खोना हैं,
तो यह खोना ही पाना हैं,
समाज की नजरो में ना जाने मैं किस ओर जा रही हूँ,
परन्तु मैं हर कदम पे उसके एहसास को जीती जा रही हूँ,
उसके बिना भी जीवन इस तरह जी जाऊँगी,
कि उसके नाम का हर आंसू, आँखों से हृदय कि ओर पी जाऊँगी |
... bahut khoob ... behatreen !!!
ReplyDeletethank you uday ji..!!
ReplyDeleteयदि उसको पाना, खुद को खोना हैं,
ReplyDeleteतो यह खोना ही पाना हैं,
बहुत खूब ....सच कहा आपने ... खुद को खोकर उनको पाना ..सच्चा जज्बा है .......शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
keval ji thanx u sooo much..!!
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