आजकल मैं कुछ थकी थकी सी हुँ
वक़्त चल रहा हैं लेकिन मैं थमी सी हुँ
ना जाने सारा दिन मैं क्या सोचती हुँ
खुद ही के भीतर मैं क्या खोजती हुँ
पंख लगा कर आसमां को छूना चाहती हुँ
चाँद और सितारों से बतियाना चाहती हुँ
कभी पानी की तेज़ कलकलाहट सुनना चाहे दिल
कभी नाचते मयूरो को देख मन जाये खिल
कभी मुझे वो फूलो की बगिया लुभाती हैं
जिन पर रंग बिरंगी तितलियाँ मंडराती हैं
कभी लगे मैं फिर बच्ची हो जाऊ
बिन बात के रोउ और खूब खिलखिलाऊ
माँ को अपनी कसकर गले लगाऊ
गोद में उनकी रख कर सिर, मैं सुकून से सो जाऊ
क्यूंकि आजकल मैं कुछ थकी थकी सी हुँ
वक़्त चल रहा हैं लेकिन मैं थमी सी हुँ