श्रृंगार कर के बैठी, खूबसूरत लगती है वो नारी,
अपने हक के लिए आवाज़ उठा दे,
संस्कारहीन कह दे दुनिया सारी,
धैर्य देखा है सबने,
दहक के दर्शन बाकी हैं,
जल जाएगी वो इसमें,
या दुनिया का जलना बाकी हैं,
अपनों की खुशियों की महक से खुश रही,
अस्तित्व बोध के लिए लड़ना बाकी हैं,
हर मोड़ पे अंगारे बिछाए अपनों ही ने,
अपने लिए खूबसूरत रास्ता बनाना उसका बाकी हैं,
जन्मदात्री तो बन गयी वो जीवन की,
अपने जीवन के निर्णय स्वयं लेना अभी बाकी हैं,
स्त्री रूप की पहचान बन गयी,
मनुष्य रूप में पहचान बनाने की आस अभी बाकी हैं,
डटी है वो सबके समक्ष, अकेले में आंसू बहाए,
साथ देना आप भी, लड़ते लड़ते कही टूट ना जाए.
अपने हक के लिए आवाज़ उठा दे,
संस्कारहीन कह दे दुनिया सारी,
धैर्य देखा है सबने,
दहक के दर्शन बाकी हैं,
जल जाएगी वो इसमें,
या दुनिया का जलना बाकी हैं,
अपनों की खुशियों की महक से खुश रही,
अस्तित्व बोध के लिए लड़ना बाकी हैं,
हर मोड़ पे अंगारे बिछाए अपनों ही ने,
अपने लिए खूबसूरत रास्ता बनाना उसका बाकी हैं,
जन्मदात्री तो बन गयी वो जीवन की,
अपने जीवन के निर्णय स्वयं लेना अभी बाकी हैं,
स्त्री रूप की पहचान बन गयी,
मनुष्य रूप में पहचान बनाने की आस अभी बाकी हैं,
डटी है वो सबके समक्ष, अकेले में आंसू बहाए,
साथ देना आप भी, लड़ते लड़ते कही टूट ना जाए.
very nice.
ReplyDeletenicly written. gud.
ReplyDeleteधैर्य देखा है ..........बहुत खुबसूरत अहसास , बधाई
ReplyDeleteKhoob...Gahan Abhivykti..
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteएक स्त्री के धैर्य को बखूबी बताया है आपने... बहुत ही अच्छी अभिवयक्ति....
ReplyDeleteaap sabhi ka shukriya...!! :-)
ReplyDeletebahut khub ,......isha ji......god bles u....
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