लोग एक दूसरे के स्टेटस को लाइक करते हैं, उसपर कमेन्ट करते हैं, अपने स्टेटस को अपडेट करते हैं, वगेरह वगेरह....तमाम तरह के ऐप्लीकेशंस हैं जिनको इस्तेमाल करके वो घंटो फेसबुक पर बिताते हैं. कुछ समझदार लोग फेसबुक का सकारात्मक इस्तेमाल करते हैं, जैसे- अपनी लिखी किताबो,ब्लोग्स का प्रचार करना, किसी सामाजिक मुद्दे पर लोगो की राय जानना, सामाजिक समस्याओं को दूर करने के लिए चलाये गये मुहिम से लोगो को जोड़ना, वगेरह....और कुछ लोग फेसबुक का इस्तेमाल बस अपने दोस्तों की संख्या बढाने, गेम्स खेलने, बे-मतलब की चैट करने जैसे कामो के लिए करते हैं.
लोगो के स्टेटस अपडेट ( ख़ास कर युवा वर्ग) पढ़ के तो ऐसा लगता हैं की वो अपनी निजी ज़िन्दगी को कितने बेवकूफों की तरह ख़ुशी ख़ुशी बाजारू कर रहे हैं. मैं ये नहीं कहती की अपनी ज़िन्दगी को सबके साथ बाटना गलत हैं, पर ये तो आप लोग भी मानते होंगे की ज़िन्दगी के कुछ एहसास इतने निजी होते हैं की उनको यूँ बाजारू करने से उनके मायने खत्म हो जाते हैं. ऐसे स्टेटस ' i have got my first kiss" , "i am no more virgin" , " i have lost my father" ...इन बातो को फेसबुक पे लिखने का क्या मतलब बनता हैं? अगर किसी को अपनी जिंदगी का पहला किस मिला हैं तो उसे उसके फ्रेंड्स लाइक करते हैं, कमेन्ट करते हैं उसपर...इतने खूबसूरत एहसास की नुमाइश लगाने का क्या मतलब बनता हैं? या अगर किसी ने अपनी virginity या father को खोया हैं तो क्या उसको फेसबुक पे लिखना जायज़ हैं? ऐसे लोग क्या चाहते हैं की लोग उनकी निजी बातो को जानकार उनकी ख़ुशी के साथ दुःख को लाइक कर के उसपर कमेन्ट दे या फिर ऐसे लोग लोगो की सहानुभूति चाहते हैं अपने दुखो पर.....मुझे लगता हैं के ऐसे लोग जितना अधिक समय फेसबुक पे बिताते हैं वो अपनी निजी ज़िन्दगी में उतने ही तन्हा और कुंठित होते हैं इसलिए ऐसी बचकानी हरकते करते हैं.
कहने को तो ये एक सोशल नेटवर्किंग साईट हैं , जिसके जरिये आप अपने बिछड़े हुए दोस्तों से जुड़ सकते हैं, या कहिये आप अपना सोशल नेटवर्क मज़बूत कर सकते हैं...पर ये मजबूती कहीं न कहीं इस अंतरजाल की दुनिया तक में सिमट के रह जाती सी दिखती हैं. पहले लोग अपनी खुशियों के मौके पर लोगो से मिलते जुलते थे या फ़ोन पर बात करते थे पर अब...किसी भी ख़ुशी, तीज-त्यौहार की बधाई को अपना स्टेटस बनाया और सबसे शेयर कर लिया और हो गया काम खत्म, न मिलना न फोन करना...एक ज़िम्मेदारी थी जो निपट गयी... इससे लोग हर ख़ुशी और गम में अपने दोस्तों और रिश्तेदारों का साथ तो दे देते हैं पर उसमे दिली भावनाए नहीं होती..सिर्फ खोखला दिखावा रह गया हैं..
सिर्फ फेसबुक पर फोटो टैग करने, दोस्तों के स्टेटस पे कमेन्ट करने, उनकी वाल पर उनको जन्मदिन की बधाईयाँ देने से उनके दिलो तक नहीं पंहुचा जा सकता...उम्मीद करती हूँ की ४ दिन बाद आने वाले रंगों के त्यौहार पर आप सिर्फ फेसबुक स्टेटस तक सिमट कर नहीं रह जायेंगे, सभी अपने दोस्तों को अपने होने का एहसास करायेगे और अपनी और उनकी ज़िन्दगी के कुछ पल साथ बिता कर अपने अकेलेपन को कम करेंगे.
बहुत सही!
ReplyDeleteबहुत सच कहा है..
ReplyDeleteफेसबुक....
ReplyDeleteआखिर क्या है ये फेसबुक...मुश्किल से ४ या ५ साल पहले से लोकप्रिय हुआ एक अड्डा जहाँ लोग ज़मघट लगाते हैं, एक दूसरे की निजी ज़िन्दगी में झांकते हैं उसपर अपनी टीका-टिपण्णी करते हैं... कई लोग फ्लर्ट करते हैं, अपने फ्रेंड लिस्ट बढ़ाते हैं....
या फिर दूसरे नज़रिए से कहें तो....
फेसबुक एक ऐसी जगह जहाँ हम अपना अवसाद कम कर सकते हैं, अपनी खुशियाँ अपने गम बाँट सकते हैं...
जहाँ हम जापान में आये सुनामी पर दुःख व्यक्त कर सकते हैं. भारत के मैच जीतने या हारने पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं, अपना गुस्सा इस बात पर ज़ाहिर कर सकते हैं कि आखिर अब तक अफज़ल गुरु को फांसी क्यूँ नहीं हुयी....
आज फेसबुक केवल एक सोशल नेटवर्किंग साईट नहीं है आज वो अपने विचारों को व्यक्त करने का ज़रिया है.... ठीक उसी तरह जैसे ये ब्लॉग..
कहने को और भी बहुत कुछ है लेकिन लगता है लम्बाई कुछ ज्यादा ही हो गयी है....
अरे हाँ आपके ब्लॉग का लिंक भी अभी फेसबुक से ही मिला है..:हा हा हा...:D
ReplyDeleteइसीलिये तो मैं इसे थोबड़ा(चेहरा)बुक कहता हूँ। ही ही।
ReplyDeleteअपन तो इस मुख-पुस्तिका से नाम मात्र का सम्पर्क ही रख पाते हैं ।
ReplyDeleteब्लागराग : क्या मैं खुश हो सकता हूँ ?
अरे... रे... आकस्मिक आक्रमण होली का !
BHUT SAHI YAAR
ReplyDeleteआप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.
ReplyDeleteसादर
aap sabhi ka shukriya...
ReplyDeleteaap sabhi ko holi ki shubhakaamnaye..! :)