समझ ना आये रास्ता क्या हैं?
ज़िन्दगी से मेरा वास्ता क्या हैं?
कभी लगाती हूँ ठहाके, कभी हर तरफ गम हैं,
इस कश-म-कश में मेरी आँखे नम हैं,
कभी वक़्त ठहरा सा लगता हैं,
कभी अनजान पहरा सा लगता हैं,
टूटने की खनक गूंजती है कानो में,
बिखरी तस्वीर हैं मेरी अलग अलग इंसानों में,
खोजती हूँ खुद को इस पहचान में,
पाती हूँ फिर भी खुद को अनजान मैं,
समझ ना आये रास्ता क्या हैं?
ज़िन्दगी से मेरा वास्ता क्या हैं?
कुछ कुछ निराशा सी समझ आ रही है इस कविता में ...क्या हो गया ?
ReplyDeleteहमेशा की तरह बहुत अच्छा लिखा है आपने.
bahut accha hai isha
ReplyDeletegud going
ReplyDeletehar din sabke liye accha nahi hota lekin phir bhi bahut accha likha hai
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने. ...
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