ये सफ़र कितनी ही कहानियाँ दे गया,
हर लम्हे में जिंदगानियां दे गया,
कभी आँख से गिरता आंसू रुसवाई,
तो कभी कोई अपना जुदाई दे गया,
कभी कुछ सपने शीशे से टूट गये,
कभी हम अपनों से,कभी वो हमसे रूठ गये,
कभी चीखती रही ख़ामोशी,
कभी महफ़िल भी खामोश हो गयी,
कभी फासलों का मंज़र था,
कभी चारो ओर बंजर था,
फिर भी खुद को संभालते हैं हम,
खोते है खुद को तो तलाशते भी हैं,
रोते हैं कभी तो मुस्कुराते भी हैं,
तन्हाई के सफ़र में चाहे जहा निकल जाए,
लौट के अपने पास आते ही हैं.
वास्तविकता के बहुत करीब है आपकी यह कविता.
ReplyDeleteसादर
सुन्दर रचना\ ज़िन्दगी के कितने रंग हैं!सब न देखें तो ज़िन्दगी का मज़ा क्या है। शुभकामनायें।
ReplyDeleteकल 28/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है-
ReplyDeleteआपके विचारों का स्वागत है .
धन्यवाद
नयी-पुरानी हलचल
बहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteकविता वास्तव में 'दस्तक' दे रही है, आभार
ReplyDeletesunder bhav.............
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबेहद खुबसुरत रचना। आभार।
ReplyDeleteकरीब क्या वास्तविक ही है
ReplyDeleteKAVITA PATANG...SHABD JAISE DOR....
ReplyDeleteBHAV JAISE USKI ATKHELIA.....
UKERTI NABH PAR KUCH PAHELIYAN...
SUNDER ATI SUNDER YE DRAYSH....
VICHITRA ATI VICHITRA YE MANCH....
MANCH PE TUMHARA YE KAVYA ROOPI ABHINAY....
MANN MOH LIA...MANN MOH LIA.....
▬● ईशा , तुम लिखती भी हो.....? मुझे नहीं पता था कि इतना अच्छा भी लिख लेती हो....... बहुत खूबसूरत लिखा है दोस्त.......
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग्स भी हैं , अगर समय मिले तो देखना...
>>> (मेरी लेखनी, मेरे विचार..)
>>> (अनुवादक पन्ना..)
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खूबसूरती से लिखे एहसास ..
ReplyDeletebhut hi khubsurat shabdo aur ehsaaso se rachi rachna...
ReplyDeleteवाकई न जाने कितनी कहांनियां मिली हैं और न जाने कितनी मिलेंगी इस सफर में...
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
bahut khoobsurat bhawnayein aur utni hi khoobsurati se shibdon me piroya gaya.
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