दूर कहीं सबसे जाना चाहती हूँ,
खुले आसमां के तले बैठना चाहती हूँ,
जहा हवा की बयार मन को बहलाए,
सागर की लहरें दिल को छू जाए,
बस चिड़ियों की चहक,फूलो की महक हो जहा,
कोई पहचाना चेहरा ना हो वहा,
मुझे ना खबर हो जहा दिन और रात की,
बातें ना हो जहा झूठे जज़्बात की,
रिश्तो के नाम पे जहा ठगी ना हो,
खंज़र किसी के दिल पे प्यार की लगी ना हो,
जहा मैं अपनी हसी सुन पाऊ,
अपने अश्को की बूँद गिन पाऊ,
अपनी साँसों की महक पाना चाहती हूँ,
दूर सबसे पर पास अपने आना चाहती हूँ,
दूर कहीं सबसे जाना चाहती हूँ
door sabse par apne pas aana chahti hun .....
ReplyDeletebahut khub kya bat hai .....
कभी कभी अच्छ्क़ा लगता है खुद का खुद के पास लौट आना। तभी दुनिया का सच जान पाते हैं।शुभकामनायें\
ReplyDeleteसच में पास अपने आना चाहती हूँ मैं... सायद मेरे मन की बात आपने रचना में कह दी....
ReplyDelete@ sunil ji , nirmala ji..dhanyawaad
ReplyDelete@ sushma ji...aapko agar meri rachna se judaao mehsoos hua to mera likhna safal hua...aapka shukriya..
सही है ... कभी कभी इंसान अपने आप से ही बात करना चाहता है .. अपने में ही खोना चाहता है ... अच्छा लिखा है ..
ReplyDeleteshukriya digambar ji..
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