Friday, October 22, 2010

तमाशा भारत का

पिछले सप्ताह खत्म हो चुके राष्ट्रमंडल खेल में भारत का प्रदर्शन उच्चतम दर्जे का रहा | भारतीय खिलाडियों ने कुल १०१ पदक जीत कर सम्पूर्ण विश्व में अपने देश को दूसरा स्थान दिला कर एक इतिहास रचा है | खिलाडियों के इस बेहतरीन प्रदर्शन से सम्पूर्ण भारत गौरवान्वित हुआ है |
देश की नागरिक होने के नाते मैं फिर भी यहीं कहूँगी कि इस खेल के उदघाटन समारोह से समापन समारोह तक मैं एक बार ये महसूस तक नहीं कर पायी कि " मेरा भारत महान" | खिलाडियों के इस उम्दा प्रदर्शन ने मुझे रोमांचित तो किया परन्तु इस खेल के अन्य पहलुओं पर नज़र डालने से इसकी छवि धूमिल ही हुई है, चाहे वे खेल से जुड़े घुटाले हो, फुट ओवर ब्रिज का गिरना हो, खेल गाँव कि बदहाल स्थिति हो या फिर खेल शुरू होने से पहले विदेशियों का अलग अलग ढंग से हमारे देश को अपमानित करना हो |
१४ अक्तूबर को खेल कि समाप्ति के बाद भी आज के दिन तक समाचार पत्र इस खेल कि बदहाल स्थिति को चिल्ला चिल्ला कर व्यक्त कर रहे हैं | आयोजन समिति के सदस्यों से लेकर नेताओं तक ने जो घुटाले किये वह शर्मनाक थे | उससे भी अधिक शर्मनाक स्थिति तो अब है जब वह सभी अपने जेबे गर्म करने के बाद एक दूसरे के ऊपर कीचड उछाल कर अपना पलड़ा झाड़ने कि कोशिश में लगे हुए  है | राष्ट्रमंडल खेलो के पूरे आयोजन में किसी भी व्यक्ति ने अपना काम ईमानदारी से ना कर के देश को अपमानित ही किया है |  आयोजन समिति के सदस्यों और सत्ताधारी नेताओं ने चन्द हरे  कागज़ के टुकडो के कारण भारत के सम्मान को सम्पूर्ण विश्व के समक्ष जिस प्रकार से धूल में मिलाया है उसके बाद तो युवा पीढ़ी के मन में एक ही बात आती है कि इन सत्ताधारियों को जड़ से उखाड़ फेकना चाहिए, ये पूर्ण रूप से खोखले हो चुके है, अब हम युवा पीढ़ी अपने भारत की भूमि पर ईमानदारी के बीज से एक नया पेड़ लगायेंगे और भारत कि शान-शौकत का झंडा विश्व में फिर से फहरायेंगे |

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