दूर हो के भी दूरी का एहसास नहीं होता,
पास होके भी दिल पास नहीं होता,
न समझ है ये, नादान भी है,
अपने से परेशान भी है,
फँस जाता है कभी ये भवर में,
कभी अट्खेलिया भी करता है,
कभी शांत रहता है ,
कभी शरारत भी करता है,
जब रूठता है ये खुद से,
बड़े प्यार से झगड़ता भी है,
कभी खुद से नाराज़ है ये,
कभी खुद को ही मनाता भी है,
कभी धधकता है ये आग सा,
कभी है शीतल एहसास सा,
हर पल अलग रंग है इसका,
शायद यही ढंग है इसका,
कैसे समझाऊ इस दिल को मैं,
या यूँ ही नासमझ रहने दू,
कभी सोचती हूँ मैं,
क्यूँ ना इसको यूँ ही जीने दू |
"...कभी सोचती हूँ मैं,
ReplyDeleteक्यूँ ना इसको यूँ ही जीने दू ...."
बेहद खूबसूरत भाव!
बहुत सुन्दर....
ReplyDeletethanks to all three of u..!!
ReplyDeleteखूबसूरत रचना
ReplyDeleteशुक्रिया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है ! निरंतर प्रयासरत रहे |
ReplyDeleteस्वागत है आपका इस अनोखी दुनिया में !
@ veena ji, समय (sorry mujhe aapka naam nahi gyaat hai), rambabu singh ji aap sabhi ka shukriya..!!
ReplyDeleteदूर हो के भी दूरी का एहसास नहीं होता,
ReplyDeleteपास होके भी दिल पास नहीं होता,..
बेहद खूबसूरत भाव!!!!!!!!!!!!!!
thanx dube ji..!!
ReplyDeletesurendra ji aapki shubhkaamnaao k liye bht bht shukriya..!!
ReplyDeleteBahut sunder manobhavon ka chitran Isha.....
ReplyDeletemonika ji thanx a lot..!!
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