Monday, November 29, 2010

इंतज़ार !!!

इंतज़ार !!!
इंतज़ार है ये खुशियों का,
या गम के करीब जा रही हूँ,
उसको पाने की चाहत में,
खुद को भूले जा रही हूँ,
ना रात के चाँद का है एहसास,
ना सूरज का महसूस होता है ताप,
मैं बस बढ़ते जा रही हूँ,
ना जाने खो रही हूँ, पा रही हूँ,
हाँ ! लेकिन खुद को भूले जा रही हूँ,
मैं निश्चित खुद को भूल के बढ़ते जाऊँगी,
खुशिया मिली तो खिल खिलाऊँगी,
परन्तु गम में एक अश्क भी ना बहाऊँगी ,
वो मिला तो मंजिल मिल जाएगी,
अन्यथा उसका एहसास ही जिंदगी बन जाएगी,
यदि उसको पाना, खुद को खोना हैं,
तो यह खोना ही पाना हैं,
समाज की नजरो में ना जाने मैं किस ओर जा रही हूँ,
परन्तु मैं हर कदम पे उसके एहसास को  जीती जा रही हूँ,
उसके बिना भी जीवन इस तरह जी जाऊँगी,
कि उसके नाम का हर आंसू, आँखों से हृदय कि ओर पी जाऊँगी |

Tuesday, November 16, 2010

ये दिल...

जब चारों ओर सन्नाटा हो,
भीतर शोर चिल्लाता है,
जब मिलता नहीं है कोई हमसे,
खुद से मिलने का समय मिल जाता है,
कभी नाराज़ हो के देखो इससे,
ये अपने को ही सताता हैं,
बहुत दूरी न बनाना दिल से,
मिलने में फिर  इतराता है,
सवाल न पूछो किसी से,
हर उत्तर ये खुद बतलाता हैं,
अपने एहसासों को कह के देखो,
ये गहराई से समझाता हैं,
यह साथ निभाते जाता हैं,
बिन शर्त धडकते जाता हैं |

Monday, November 15, 2010

दिल बनाम दिमाग

दोस्तों आज भी एक युद्ध चल रहा हैं मेरे दिल और दिमाग के बीच | सोचा, अगर ब्लॉग पर लिख दूंगी तो शायद आप सभी की प्रतिक्रिया से कोई उत्तर हाथ लग जाए | वैसे तो सबको अपने दिल और दिमाग के बीच चल रहे द्वन्द का उत्तर ज्ञात होता है परन्तु जैसा की हमारे मुकुल सर कहते है कि " लोगो की राय और  सलाह से बस आपके मन की बातें जूम इन हो जाती है"  तो सोचा आज अपने को समझने के लिए आप लोगो की मदद ले ली जाए |
 
दोस्तों ये एक ऐसा द्वन्द है जिसमे बीच का कोई रास्ता मुझे सूझ नहीं रहा और ना ही मैं अपनी ज़िन्दगी में बीच के रास्तो को चुनती हु, या  आर या पार | आप लोगो से भी यहीं गुज़ारिश है कि यदि कुछ कहना हो तो एक तरफ़ा रास्ता सुझायिगा |
 
ये बात है मेरी और मेरी बहुत ही अच्छी दोस्त की, मेरी एक दोस्त जिसे कुछ समय में मैंने अपने दिल के इतने करीब पाया कि कभी भी उसके लिए कुछ दिमाग से सोच ही नहीं पायी, उसकी हर एक बात मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बनती गयी, उसकी हसीं में मैं अपनी ख़ुशी महसूस करने लगी और उसकी तकलीफे मुझे रुलाने लगी | मैं इतनी खुश कभी नहीं हुई अपनी किसी भी दोस्त को लेकर पर उस दोस्त से मेरा रिश्ता कुछ अलग ही है | इसका एहसास जैसे जैसे मुझे होता गया  मैं अपने रिश्ते में और अधिक गहराई महसूस करती गयी |
 
मैं अपने सभी रिश्तेदारों और जानने वालो को अपनी दोस्ती के किस्से बड़ी ख़ुशी से सुनाने लगी | लेकिन शायद जैसा बड़े कहते है कि किसी भी बात का बहुत अधिक बखान नहीं करना चाहिए वरना उसमे नज़र लग जाती है | कुछ यहीं स्थिति आन पड़ी है मेरी दोस्ती में, मेरी ही नज़र लग गयी है उसमें |
 
हर बार कि तरह एक दिन मैं अपने किसी जानने वाले को अपनी उस दोस्त के बारे में बता रही थी , तभी अचानक कुछ ऐसी बात जान पड़ी जिससे मुझे बहुत तकलीफ पहुंची | मुझे लगा के मैंने अपनी जिस दोस्त पर इतना भरोसा किया, उसके सामने अपनी जीवन कि किताब पूरी तरह से खोल दी उसी दोस्त ने मेरी कमियों का और लोगो के सामने मजाक बना दिया | लेकिन साथ ही साथ इस वाकये के बाद से ही मेरा दिल यह भी  कह रहा है कि जो भी उसने किया वो उसने किया नहीं बस अनजाने में उससे हो गया लेकिन मेरा दिमाग, दिल कि सुन ही नहीं रहा |
 
बस एक इस छोटे से वाकये ने मेरी नज़र को  इस समय के लिए बदल दिया और मैंने अपनी उस करीबी दोस्त कि हर नेगटिव बात नोटिस करनी शुरू कर दी | बस फिर क्या था ...हम दोनों दोस्तों के बीच दूरियां आने लगी | एक अनकहीं, अनसुनी बातो का झगडा शुरू हो गया और मैंने पाया कि इस झगडे में हम दोनों ही परेशान है | हम दोनों ये जानते है कि हम एक दूसरे के बिना अधूरे हैं परन्तु फिर भी यह हमारे बीच कि अडचने खत्म ही नहीं हो रही हैं |
 
इतने दिनों के बाद भी मैं पूरे दिल से चाहती हूँ कि हम दोनों फिर से एक नयी शुरुआत करे परन्तु दिमाग अब भी मेरे दिल का साथ नहीं दे रहा हैं |
 
तो दोस्तों अगर आप लोगो का कोई रास्ता सूझे तो मुझे ज़रूर बताइए शायद मेरे दिल कि बात " जूम इन " हो जाए | 
 
लेकिन कहियेगा वही जो आपको सही लगता हैं मेरे दिल को ध्यान में रख कर उत्तर मत दीजियेगा|