Tuesday, September 25, 2012

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रूठने पर भी रूठ ना पाऊं
शैतानियों से अपनी वो खूब हसाएं,
जब चोट लग जाए मुझे
नम आँखों से मुझपे चिल्लाये,
हर सन्डे जब खेले कुछ भी
जान बूझ के मुझे जिताए,
मिर्च हो जब सब्जी में ज्यादा
हाथो से अपने मुझे पानी पिलाए,
मुझे कभी जो नींद ना आये
थपकी देकर मुझे सुलाए,
खाना जो ना मैं खाऊं कभी
डाटे जोर से और मुझे रुलाये,
माँ-बाप से दूर आकर भी
ना जाने क्यूँ उनकी याद ना आये,
पहले मैं कभी अधूरी थी
साथ उनका मुझे पूरा कर जाए,
बस यूँ ही जीती रहूँ उम्र भर,
ज़िन्दगी बस यूँ ही कट जाए.

Thursday, August 23, 2012

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कुछ नादां ख्वाइशे है मेरी
पूरी करने की कोशिश जिन्हें मैं करती रहूँ,
पता ना हो जाना कहा हैं
कदम मेरे चलते रहे,
आशाएं मेरी ना डूबे
सूरज चाहे ढलता रहे,
शोर मेरा ना सुन पाए कोई
खामोशी अपनी मैं सुनती रहूँ,
लब पर बस मुस्कराहट हो
गम दिल में चाहे पलता रहे,
पता ना हो लिखना क्या हैं
पर कलम मेरी चलती रहे,
खो जाऊ मैं सबके लिए
खुद के लिए पलती रहूँ,
रौशनी में भी चाहे ना पहचाने कोई
अँधेरे में खुद से मगर में मिलती रहूँ,
डर ना हो मौत का मुझे
उसे अपना समझ मैं फिरती रहूँ.
कुछ नादां ख्वाइशे है मेरी
पूरी करने की कोशिश जिन्हें मैं करती रहूँ.

Tuesday, August 14, 2012

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कुछ लिखो तो
कहते है लोग
तुम जो महसूस करते हो
वो लिखते हो
क्या किसी के एहसासों को
शब्दों में पिरोना
मुश्किल है ?

कोई शांत हो तो

कहते है लोग
गंभीर हो तुम
क्या किसी के मौन को समझना
मुश्किल है ?

कोई ज़ख़्मी हो तो

ज़ख्म को उसके
कुरेदते है लोग
क्या किसी के ज़ख्म पे मरहम लगाना
मुश्किल है ?

आँख से गिरते आंसू देख

कहते है लोग
कमज़ोर हो तुम
क्या अपनी ही आँख से आंसू छलकाना
मुश्किल है ?


आपको अपना कहते है
जो लोग
उनके लिए
आपको ही समझ पाना
क्यूँ मुश्किल है ?


Tuesday, June 26, 2012


काश, मैं लिख पाऊ एक कविता
बता पाऊ मैं अपनी चाहत तुम्हे,
माँ सी ममता है तुमसे
बहन सा दुलार भी हैं
आशिकों सा जूनून है
दोस्त सा साथ भी हैं,
पत्नी सा प्यार हैं,
बेटी सा विश्वास भी हैं,

स्त्री के हर रूप का एहसास
दिलाता है तुम्हारा साथ

काश, मैं लिख पाऊ एक कविता
बता पाऊ मैं अपनी चाहत तुम्हे.

Tuesday, March 27, 2012

नारी - नाम है सम्मान का, या
         समाज ने कोई  ढोंग रचा है.

बेटी - नाम है दुलार का, या
         समाज के लिए सजा है.

पत्नी - किसी पुरुष की सगी है, या
           यह रिश्ता भी एक ठगी है.

माँ -  ममता की परिभाषा है, या
        होना इसका भी एक निराशा है.

नारी - नाम है स्वाभिमान का, या
          इसका हर रिश्ता है अपमान का.