Saturday, June 15, 2013

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लिखना जब से छूटा है,
लगे साथ कोई टूटा है,
कागज़ कलम भी मुझसे रूठे है,
कहे तेरे किए हर वादे झूठे है,
कोई ना समझे मेरे भीतर की उधेड़बुन को,
किन अक्षरों में लिखूँ
ना लिख पाने के खाली पन को,
उँगलियाँ तो मेरी अब भी कलम की ओर बढ़ती है,
लिख ना पाऊँ तो क्या
औरो की कलम का लिखा तो पढ़ती हूँ,
फिर लिख पाने की चाहत
ना लिख पाने की कसक से बहुत ज्यादा है,
मैं लिख पाऊँगी
फिर से
ये मेरा वादा है.