Tuesday, September 25, 2012

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रूठने पर भी रूठ ना पाऊं
शैतानियों से अपनी वो खूब हसाएं,
जब चोट लग जाए मुझे
नम आँखों से मुझपे चिल्लाये,
हर सन्डे जब खेले कुछ भी
जान बूझ के मुझे जिताए,
मिर्च हो जब सब्जी में ज्यादा
हाथो से अपने मुझे पानी पिलाए,
मुझे कभी जो नींद ना आये
थपकी देकर मुझे सुलाए,
खाना जो ना मैं खाऊं कभी
डाटे जोर से और मुझे रुलाये,
माँ-बाप से दूर आकर भी
ना जाने क्यूँ उनकी याद ना आये,
पहले मैं कभी अधूरी थी
साथ उनका मुझे पूरा कर जाए,
बस यूँ ही जीती रहूँ उम्र भर,
ज़िन्दगी बस यूँ ही कट जाए.