Saturday, January 29, 2011

ज़िन्दगी की दौड़

ये कैसी दौड़ है ज़िन्दगी की ?
बस भागते ही जाती हैं,
हर पल एक रहस्य के साथ,
अनसुलझी पहेलियो के साथ,
कभी कुछ कहती भी नही,
किसी पल रूकती भी नहीं,
अपनी ही ऐठ हैं इसकी,
तमाम सवाल पूछती हूँ मैं,
पूछते थक जाती हूँ मैं,
ये जवाब देती नही,
बस दौड़े जाती हैं,
कभी रुलाती हैं ये ख़ुशी से,
कभी गम दे जाती हैं,
जब तंग करो इसको प्रश्नों से,
एक उत्तर ये देती हैं,
कहती कि मैं रूकती नही,
रूकती तो फिर चलती नही |

Saturday, January 15, 2011

माया के जन्मदिन की माया

कल १५ जनवरी को उत्तर प्रदेश की माननीय मुख्यमंत्री मायावती जी का जन्मदिन था. उन्होंने अपने ५५ वे जन्मदिन पर ढेरो योजनाये जनता क समक्ष प्रस्तुत की. उन्होंने उत्तर प्रदेश में जनहित गारंटी कानून लागू किया जिसके अंतर्गत जनता को जन्म मृत्यु प्रमाण पत्र, जाती, निवास, आय, विकलांगता का प्रमाण पत्र, किसान बही, राशन कार्ड, पानी के कनेक्शन आदि के लिए भटकना नहीं पड़ेगा. इसके साथ ही साथ मुख्यमंत्री जी ने ५००० से अधिक आबादी वाले ग्राम पंचायतो में "ग्राम सचिवालय" स्थापित करने की घोषणा करी. कुल मिलकर उन्होंने इस सुअवसर पर ४००० करोड़ रूपये लगत की ६०० से अधिक योजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया.
मायावती जी के जन्मदिन पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन भी हुआ. मुख्यमंत्री जी ने स्वयं जो केक काटा वो तो काटा ही साथ ही साथ उनके शुभचिंतको ने भी अपने अपने ढंग से उनको जन्मदिन की बधाइयां दी. लखनऊ की हजरतगंज में स्वास्थ्य मंत्री अनंत मिश्र ने ५५ किलो का भव्य केक काट कर मुख्यमंत्री जी को बधाइयाँ दी.
मुख्यमंत्री जी के जन्मदिन पर इतने भव्य आयोजन और उनके शुभचिंतको की बधाइयों के बाद अखबार में छपा दृश्य ( १६-०१-२०११ का दैनिक जागरण, पृष्ठ १७) दिल में एक दर्द सा उत्तपन करता हैं. जारी चित्र के नीचे कुछ यूँ लिखा हैं "केक की माया: मुख्यमंत्री मायावती का जन्मदिन मनाने के लिए हाथरस में शनिवार को पुरानी कलक्ट्रेट में विशाल केक कटा तो अतिथियों के हटते ही उस पर टूट पड़ी जनता". इस पंक्ति को पढने के बाद मुझे दिमाग में जो सूझा वो ये था अर्थात अगर मैं इस चित्र को देखकर जो लिखती वो हैं " माया की माया:मुख्यमंत्री मायावती का जन्मदिन मनाने के लिए हाथरस में शनिवार को पुरानी कलक्ट्रेट में विशाल केक कटा तो अतिथियों के हटते ही वह माया के राज-काज में मौजूद भुखमरी पीड़ित लोगो ने भी उनके जन्मदिन का मज़ा लूटा". अतः ये तो माया की ही माया हैं क्योंकि यदि कल उनका जन्मदिन न होता तो इन गरीब लोगो को केक का सुख कैसे नसीब होता?
अब मेरे मन में जो प्रश्न कोंधता है वो यह हैं की माननीय मुख्यमंत्री जी और उनके जन्मदिन पर उनके शुभचिंतक, जिन्होंने अपने-अपने ढंग से मायावती जी को बधाइयाँ दी, वेह भले ही रोज़ अखबार न भी पढ़ते हो परन्तु अपने कारनामो की वाहवाही पढने के लिए तो अखबार के पन्ने पलटे ही होंगे, तो क्या उनकी नजर इस दृश्य पर नहीं पढ़ी? यदि नजर इस दृश्य पर पढ़ी तो उन महान व्यक्तिव लोगो ने क्या सोचा होगा? मुझे नहीं लगता ये सुन्दरीकरण इसलिए किया जा रहा हैं की इन सुन्दर सडको पर बैठकर बच्चे भीख मांगे या सडको पर पड़े हुए बासी और खराब केक ( भोजन) को ग्रहण करे.
जन्मदिन पर वाहवाही लूटने के लिए करोडो की योजनाये घोषित कर देने मात्र से स्थितियों में सुधार नहीं आएगा यदि सही मायनों में सुन्दरीकरण करना ही हैं तो वह सुन्दरीकरण मानव जीवन का होना चाहिए.

Thursday, January 6, 2011

फाँसी पर झूलता भारत का भविष्य

मैं बचपन से ही अपने बड़ो से यह सुनती आ रही हूँ कि हमारी ज़िन्दगी ही हमारे सपनो को साकार करती हैं|यह जीवन जो इश्वर ने हमें दिया हैं, वह अत्यंत मूल्यवान हैं| हमें इस जीवन में ही अपनी समस्त इच्छाओ को पूरा करना हैं और सभी सपनो को सच्चाई में तब्दील करना हैं और अपने बड़ो की दी हुई इसी सीख पर अमल करते हुए मैं अपने सपनो को सच बनाने के लिए हर पल जुटी हुई हूँ और इस उम्मीद को भी कायम कर रखा है के एक दिन मुझे अपने लक्ष्य कि प्राप्ति जरूर होगी|
परन्तु जब किसी एक कि सोच दूसरे कि सोच से टकराती हैं तो एक भयानक विस्फोट होता हैं| मेरा जीवन भी इन दिनों सोच- समझ कि कुछ ऐसी ही असमानताओ से घिरा हुआ हैं|
आज कल जो तथ्य समाचारपत्र कह रहे हैं उनको पढ़ कर मुझे लगता हैं के मेरे बड़ो की सोच कितनी सही हैं और कितनी गलत ? कहने का अर्थ यह हैं कि अखबारों में रोज़ आत्महत्या के किस्से पढ़ के ऐसा लगता हैं कि कौन सही हैं, वो इंसान जिसने आत्महत्या जैसा घिनौना काम किया या मेरे बड़ो कि दी हुई सीख सही है? जब अखबारों में पढो के फलां बच्चे ने फलां कारण से आत्महत्या कर ली तो ये पढ़ कर बहुत ही शर्मिंदगी महसूस होती हैं और साथ ही साथ ये प्रश्न भी मन में आता हैं कि उस बच्चे के इस कदम के पीछे क्या कारण होगा?
यह तथ्य तो सभी जानते हैं एक-एक इकाई से मिलकर समाज और फिर देश निर्मित होता हैं| इसका अर्थ ये हुआ के हमारे भारत का विकास प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर करता है और मुख्यतः युवाओं पर जो हमारे भारत के भविष्य को सवारने में सबसे अधिक सहायक होंगे|
कुछ दिनों पहले ही मैंने अखबार में पढ़ा कि एक पांचवी कक्षा के बच्चे ने खुद को फाँसी पर चढ़ा दिया और अपने जीवन को समाप्त कर दिया| इसी तरह १३ साल के रौवंजित रावला ने आत्महत्या कर के अपना खूबसूरत जीवन ख़त्म कर दिया| २००१ में विद्यार्थी मिनी ने अपने मन मुताबिक़ कोलेज में दाखिला ना होने के कारण सुसाइड कर लिया| इसी प्रकार १३ वर्षीय नेहा ने अपने माता-पिता द्वारा रिअलिटी शो में हिस्सा ना लेने देने के कारण सुसाइड कर लिया| इस तरह से सुसाइड के तमाम केस हमें पिछले अखबारों और इन्टरनेट पर मिल जायेंगे|
आज हमारा देश भले ही तरक्की कि राह पर हैं, लेकिन यह एक कडवी सच्चाई हैं कि २००९ में १४ साल से कम उम्र के करीब ८ बच्चो ने हर दिन आत्महत्या की| गृह मंत्रालय ने यह आकड़ा जारी किया हैं| उसके अनुसार २००९ में २,९५१ बच्चो, जिसमे १,४५० लडकियां हैं, ने अपनी जिंदगी समाप्त कर ली| इस मामले में मध्य प्रदेश २६६ लडको और २४२ लड़कियों साथ पहले स्थान पर हैं| इसके बाद पश्चिम बंगाल के ४५३, कर्नाटक के ३६६, तमिलनाडु के २८०, छत्तीसगढ़ के १८०, राजस्थान के १६१, उड़ीसा के १३६, उत्तर प्रदेश के ११३, और जम्मू-कश्मीर, नागालैंड के २-२ मामले हैं| देश में सबसे ज्यादा १५-२९ साल की उम्र वाले आत्महत्या करते हैं| इन आकड़ो को देखने के बाद यह कहने में कोई अतिशियोक्ति नहीं होती के भारत का भविष्य फाँसी पर झूल रहा हैं|
मेरे ज़हन में जो प्रश्न बार-बार आता हैं वो यह हैं कि आखिरकार युवा पीढ़ी इतनी कमज़ोर कैसे हो सकती हैं और इन आत्महत्याओं के पीछे क्या कारण हैं और इस तरह कि समस्याओं से कैसे निपटा जा सकता हैं?
जो मैंने अब तक जाना हैं उसके अनुसार तो मुझे ये ही ज्ञात है कि आत्महत्या एक त्वरित आवेग हैं जो इतनी तेज़ी से आता हैं कि एक व्यक्ति कि सोचने- समझने कि शक्ति लगभग समाप्त हो जाती हैं और उसे अपने अंधकारमय जीवन से बाहर आने का कोई रास्ता नहीं सूझता इसलिए वह व्यक्ति ऐसा कदम उठाता हैं| समस्या यह हैं कि इस आकस्मिक आवेग के पीछे के कारणों का और ना ही उन कारणों के निवारण पर किसी प्रकार का ध्यान दिया जा रहा हैं| यदि भारत की युवा पीढ़ी इसी प्रकार से आत्महत्या का कदम उठाती रही तो सुनहरे भारत कि कल्पना बस एक कल्पना ही रह जायेगी|

Tuesday, January 4, 2011

एक आदमी की जान जाती है, उनका कुछ नहीं होता...

आप सब इस बात से वाकिफ होंगे कि इस समय उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री कुमारी मायावती देवी लखनऊ की दशा को सुधारने की कोशिश कर रही हैं। उनकी इस कोशिश में तमाम मजदूर दिन-रात सड़कों पर मेहनत करते नजर आ रहे हैं। लखनऊ के लगभग हर इलाके में निर्माण कार्य चल रहा है। यह योजना इतनी तेज गति से चल रही है कि इनके सामने एक व्यक्ति के जीवन को कोई महत्व नहीं दिया जा रहा है।

27 दिसंबर 2010 को शाम 7:15 बजे गोमती नगर, लखनऊ के एक निर्माणधीन स्थल पर 22 साल का मजदूर मोहम्‍मद इनामुल निर्माण के लिए खोदे गये गड्ढे में जा गिरा। उसके गड्ढे में गिरने के बाद चारों ओर की सूखी मिट्टी उसके ऊपर लगातार गिरती चली गयी और वह उस मिट्टी के ढेर में दब गया। उसके ऊपर से मिट्टी के ढेर को हटाने के लिए आसपास मौजूद अन्य मजदूरों ने हावड़े और जेसीबी मशीनों का इस्तेमाल किया। करीब पांच घंटो की कड़ी मेहनत के बाद रात्रि ग्‍यारह बजे इनामुल निकाला तो गया, लेकिन तब तक उसकी सांसें रुक चुकी थीं। उसके घरवाले बदहवास हो गये थे और उन्‍हें इनामुल की मौत का यकीन नहीं हो रहा था। इनामुल के चाचा मोहम्‍मद नजरुल वा भाई इकरामुल अपनी तसल्ली के लिए उसको एंबुलेंस से चिविवि ले गये, जहां डाक्‍टरों ने उसको मृत घोषित कर दिया। चौक की पुलिस ने शव का पंचनामा भर कर कर उसका पोस्टमार्टम करवाया।

दोस्तो, ये बात केवल इनामुल कि जिंदगी की नहीं बल्कि इनामुल जैसे न जाने कितने ही मजदूरों की जिंदगी की है, जो रोज मौत के घाट उतर रहे हैं। हमारी माननीय मुख्यमंत्री जी के पास इन मजदूरों की जिंदगी और मौत का कोई भी लेखा जोखा नहीं होगा क्योंकि वो तो व्यस्त हैं अरबों-करोड़ो की विकास योजनाओं को जमीन पर उतारने में। जहां सड़कों के निर्माण और सुधार में करोड़ो खर्च हो रहे हैं, वहीं उस निर्माण कार्य में जुटे हुए मजदूरों की सुरक्षा का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। यह बात क्या हमारी मुख्यमंत्री जी के जहन में एक बार भी आ कर नहीं टिकती? और यदि वह यह कहती भी हैं कि इस दिशा में सुरक्षा इंतजाम किये जा रहे है तो वह इंतजाम कहीं दिखते क्यों नहीं?

Saturday, January 1, 2011

मैं यहां हूँ

आज जाना मैं कहाँ हूँ 
ना यहां हूँ ना वहां हूँ
खुद को ढूंढ़ते ढूंढ़ते  पहुंची  जहां
मैं वहां हूँ मैं वहां हूँ
उस खुदा की हूँ शुक्रगुज़ार
की जाना आज मैं कहाँ हूँ
होना ना चाहती थी जहां
मैं वहां हूँ मैं वहां हूँ
चलूंगी अपने रास्तो पर अब
पाऊँगी अपनी मंजिलो को अब
कह सकूँगी  कल
होना चाहती थी जहां
मैं वहां हूँ मैं वहां हूँ |