Wednesday, December 1, 2010

क्यों ?

जीवन का अधूरापन कैसे मिटाये ?
तन्हाई में भी कैसे मुस्कुराये ?
आंसुओ को कैसे हंसी बनाये ?
खुद से ही खुद को कैसे छुपाये ?
बारिश की बूँदें भी चुभती है तन पर,
ना जाने कैसा बोझ है मन पर,
किसी एक का एहसास क्यों है इतना गहरा ?
क्यों नहीं देखती आँखें अपनों का चेहरा ?
क्यों सागर की लहरें भी लगती अन्जान ?
जिनको देख कभी दिल होता था शैतान ,
क्यों आज हसने से डरती हूँ ?
क्यों अपने से ही  लड़ती हूँ ?
क्यों नहीं दिखता मुझे हँसता सवेरा ?
क्यों लगता है चारो ओर अँधेरा ?
क्यों अब फूल में भी कांटे  दिखते हैं ?
क्यों अब हम केवल निराशा लिखते हैं ?
क्यों हमने जीवन का मकसद खो दिया ?
क्यों जीवन में इतना ज़हर पिया ?
क्यों हमने खुद को इतना सताया ?
क्यों मुझे छोड़ रहा है मेरा ही साया ?
क्यों ? क्यों ? क्यों ?