Tuesday, November 16, 2010

ये दिल...

जब चारों ओर सन्नाटा हो,
भीतर शोर चिल्लाता है,
जब मिलता नहीं है कोई हमसे,
खुद से मिलने का समय मिल जाता है,
कभी नाराज़ हो के देखो इससे,
ये अपने को ही सताता हैं,
बहुत दूरी न बनाना दिल से,
मिलने में फिर  इतराता है,
सवाल न पूछो किसी से,
हर उत्तर ये खुद बतलाता हैं,
अपने एहसासों को कह के देखो,
ये गहराई से समझाता हैं,
यह साथ निभाते जाता हैं,
बिन शर्त धडकते जाता हैं |

12 comments:

  1. sunder rachna. pahli baar aana hua par aana safal hua. kabhi waqt nikal kar meri rachnao par bhi tippni karne ki koshish kare. shukriya.

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  2. ईशा !!! अच्छी कोशिश !!

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  3. जब मिलता नहीं है कोई हमसे
    खुद से मिलने का समय मिल जाता है
    कभी नाराज़ हो के देखो इससे
    ये अपने को ही सताता हैं

    वाह, एकदम नए अंदाज की कविता...बहुत सुंदर।

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  4. @ mahendra verma ji....bahut bahut shukriya..!!

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  6. क्या खूब लिखा है...वाह!

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