Thursday, January 6, 2011

फाँसी पर झूलता भारत का भविष्य

मैं बचपन से ही अपने बड़ो से यह सुनती आ रही हूँ कि हमारी ज़िन्दगी ही हमारे सपनो को साकार करती हैं|यह जीवन जो इश्वर ने हमें दिया हैं, वह अत्यंत मूल्यवान हैं| हमें इस जीवन में ही अपनी समस्त इच्छाओ को पूरा करना हैं और सभी सपनो को सच्चाई में तब्दील करना हैं और अपने बड़ो की दी हुई इसी सीख पर अमल करते हुए मैं अपने सपनो को सच बनाने के लिए हर पल जुटी हुई हूँ और इस उम्मीद को भी कायम कर रखा है के एक दिन मुझे अपने लक्ष्य कि प्राप्ति जरूर होगी|
परन्तु जब किसी एक कि सोच दूसरे कि सोच से टकराती हैं तो एक भयानक विस्फोट होता हैं| मेरा जीवन भी इन दिनों सोच- समझ कि कुछ ऐसी ही असमानताओ से घिरा हुआ हैं|
आज कल जो तथ्य समाचारपत्र कह रहे हैं उनको पढ़ कर मुझे लगता हैं के मेरे बड़ो की सोच कितनी सही हैं और कितनी गलत ? कहने का अर्थ यह हैं कि अखबारों में रोज़ आत्महत्या के किस्से पढ़ के ऐसा लगता हैं कि कौन सही हैं, वो इंसान जिसने आत्महत्या जैसा घिनौना काम किया या मेरे बड़ो कि दी हुई सीख सही है? जब अखबारों में पढो के फलां बच्चे ने फलां कारण से आत्महत्या कर ली तो ये पढ़ कर बहुत ही शर्मिंदगी महसूस होती हैं और साथ ही साथ ये प्रश्न भी मन में आता हैं कि उस बच्चे के इस कदम के पीछे क्या कारण होगा?
यह तथ्य तो सभी जानते हैं एक-एक इकाई से मिलकर समाज और फिर देश निर्मित होता हैं| इसका अर्थ ये हुआ के हमारे भारत का विकास प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर करता है और मुख्यतः युवाओं पर जो हमारे भारत के भविष्य को सवारने में सबसे अधिक सहायक होंगे|
कुछ दिनों पहले ही मैंने अखबार में पढ़ा कि एक पांचवी कक्षा के बच्चे ने खुद को फाँसी पर चढ़ा दिया और अपने जीवन को समाप्त कर दिया| इसी तरह १३ साल के रौवंजित रावला ने आत्महत्या कर के अपना खूबसूरत जीवन ख़त्म कर दिया| २००१ में विद्यार्थी मिनी ने अपने मन मुताबिक़ कोलेज में दाखिला ना होने के कारण सुसाइड कर लिया| इसी प्रकार १३ वर्षीय नेहा ने अपने माता-पिता द्वारा रिअलिटी शो में हिस्सा ना लेने देने के कारण सुसाइड कर लिया| इस तरह से सुसाइड के तमाम केस हमें पिछले अखबारों और इन्टरनेट पर मिल जायेंगे|
आज हमारा देश भले ही तरक्की कि राह पर हैं, लेकिन यह एक कडवी सच्चाई हैं कि २००९ में १४ साल से कम उम्र के करीब ८ बच्चो ने हर दिन आत्महत्या की| गृह मंत्रालय ने यह आकड़ा जारी किया हैं| उसके अनुसार २००९ में २,९५१ बच्चो, जिसमे १,४५० लडकियां हैं, ने अपनी जिंदगी समाप्त कर ली| इस मामले में मध्य प्रदेश २६६ लडको और २४२ लड़कियों साथ पहले स्थान पर हैं| इसके बाद पश्चिम बंगाल के ४५३, कर्नाटक के ३६६, तमिलनाडु के २८०, छत्तीसगढ़ के १८०, राजस्थान के १६१, उड़ीसा के १३६, उत्तर प्रदेश के ११३, और जम्मू-कश्मीर, नागालैंड के २-२ मामले हैं| देश में सबसे ज्यादा १५-२९ साल की उम्र वाले आत्महत्या करते हैं| इन आकड़ो को देखने के बाद यह कहने में कोई अतिशियोक्ति नहीं होती के भारत का भविष्य फाँसी पर झूल रहा हैं|
मेरे ज़हन में जो प्रश्न बार-बार आता हैं वो यह हैं कि आखिरकार युवा पीढ़ी इतनी कमज़ोर कैसे हो सकती हैं और इन आत्महत्याओं के पीछे क्या कारण हैं और इस तरह कि समस्याओं से कैसे निपटा जा सकता हैं?
जो मैंने अब तक जाना हैं उसके अनुसार तो मुझे ये ही ज्ञात है कि आत्महत्या एक त्वरित आवेग हैं जो इतनी तेज़ी से आता हैं कि एक व्यक्ति कि सोचने- समझने कि शक्ति लगभग समाप्त हो जाती हैं और उसे अपने अंधकारमय जीवन से बाहर आने का कोई रास्ता नहीं सूझता इसलिए वह व्यक्ति ऐसा कदम उठाता हैं| समस्या यह हैं कि इस आकस्मिक आवेग के पीछे के कारणों का और ना ही उन कारणों के निवारण पर किसी प्रकार का ध्यान दिया जा रहा हैं| यदि भारत की युवा पीढ़ी इसी प्रकार से आत्महत्या का कदम उठाती रही तो सुनहरे भारत कि कल्पना बस एक कल्पना ही रह जायेगी|

3 comments:

  1. बिलकुल सही कहा ईशा जी,आत्महत्या का निर्णय कोई यूँ ही नहीं लेता यह दिमागी तनाव की चरम स्थिति है जिसके मूलभूत कारणों को जाने बिना इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता.

    बहुत ही विचारणीय आलेख.

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  2. isha,
    its wonderful exhibition of stastics,along with some soulful demonstration of diminition of our socio-cultural values and morals.
    it is simply pure and away from any prejudice.
    wonderful work....
    keep it up.

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