Wednesday, February 2, 2011

कल रात का ख्वाब

आज सुबह जब सो कर उठी सब कुछ हर रोज़ जैसा था. वही सूरज, वही चिडियों की चहक, वही माँ के हाथ की बनी हुई गरम गरम चाय और  वही मैं. कुछ बदला था तो वह थी मेरे आँखों की चमक. हर रोज़ सुबह उठने पर आँखों में कुछ पाने के सपने होते थे,ज़िन्दगी में आगे बढ़ने की ललक होती थी पर आज जब उठी तो आँखों में नमी थी, कुछ बुरे ख्वाबो का दर्द था.
 
एक ख्वाब जिसने मेरे जीवन की एक खूबसूरत सुबह को खराब कर दिया और साथ ही साथ मुझे उस ख्वाब को हकीकत ना बनने देने की ओर आगे बढ़ा दिया सबकी तरह मेरी ज़िन्दगी के भी कुछ सपने हैं जिनको मुझे पूरा करना हैं. पर कल रात के ख्वाब में मैंने देखा की मैं अपनी ज़िन्दगी का कोई भी सपना सच नही कर पायी. मैं ज़िन्दगी में सब कुछ हार के एक समुन्द्र के किनारे तन्हा खड़ी हूँ. जहाँ कोई मुझे नहीं पहचानता, जहाँ सिर्फ मेरे साथ मेरी हार हैं.
 
इस सपने ने मुझे अपने बारे में सोचने पर मजबूर किया. ये सोचने पर मजबूर की जिन सपनो को मैं सच करना चाहती हूँ उनके सिर्फ ख्वाबो में अधूरे रहने से जब इतनी तकलीफ हो रही हैं तो अगर कहीं ऐसा हकीकत में हुआ तो वह वेदना कितनी अधिक होगी.
 
इस ख्वाब के बाद कई बातो का एहसास हुआ. लगा की क्यूँ मैं अपने क्लास को बंक कर के कैंटीन जाती हूँ, क्यूँ लाइब्रेरी में जाने वाले समय में दोस्तों के साथ तफरी करती हूँ, जब मैं देर रात तक जग कर पढाई नहीं कर पाती तो कैसे मैं देर रात तक दोस्तों से फ़ोन पर बात करती हूँ, क्यूँ जो एक आध घंटा मैं पढने का सोचती हूँ उस समय कहीं ना कहीं किसी काम से चली जाती हूँ, क्यूँ मेरा खुद पर कोई नियंत्रण नहीं हैं?
 
जवाब में कुछ अगर पा रही थी तो वो बस इतना की मैंने अपने और अपने सपनो को कभी केंद्र में रखा ही नहीं. कहने को तो मेरे पास सपने हैं पर उनको हकीकत में बदलने का जूनून हैं ही नहीं. मुझे खुद के सपनो को हकीकत में बदलने से ज़्यादा अपनी ज़िन्दगी को बईमानी खुशिया देने में मज़ा आ रहा हैं. मैं अगर कुछ समय के लिए अपनी ज़िन्दगी पूरी तरह से अपने सपनो को हकीकत बनाने के लिए सोचूं  तो उसके साथ साथ जो छोटी रूकावटे दिखती है वो इतना डरा देती हैं की मैं इस ओर सोचती ही नहीं और वापस अपनी बिन मतलब की ज़िन्दगी में मशगूल हो जाती हूँ.
 
पर अब यह एहसास हो गया की मेरी ज़िन्दगी इन चंद बईमानी खुशियों की मोहताज नहीं बल्कि मेरी ज़िन्दगी मेरे सपनो को हकीकत में बदलने का ज़रिया हैं. एक रात का ख्वाब जब इतनी तकलीफ दे सकता हैं तो क्यूँ मैं उस तकलीफ को अपनी असल ज़िन्दगी में बर्दाश्त करूँ.
 
मेरी ज़िन्दगी मेरी अपनी हैं और मैं इसे और चीज़ों से नियंत्रित नहीं होने दूंगी अब मेरे इर्द गिर्द की चीज़ों को मुझे अपने हिसाब से नियंत्रित करना हैं और अपने सपनो को  हकीकत में बदल कर अपने जीवन को साकार करना हैं. 

5 comments:

  1. एकदम सही सोच। अगर सब बचपन में ही यह सब ठान लें तो आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
    प्‍याज मेड इन चाइना

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  2. ईशा जहाँ आँख खुले वहीं सवेरा अच्छा लिखा है पर कहीं कहीं थोडा भाषण लग रहा है पर आप परेशान न हों लिखना जारी रखें आभार

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  3. @ avinash ji..thank you..
    @ mukul sir..aapki rai k bht bht dhanyawaad..main next article me koshish karungi ki wo bhashan ki taraf na mude..thank you sir.

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  4. ache spno ko yaad rakho..bure sapno ko bhul jao...nahi to zindgi bojhil ho jayegi...acha likha hai.

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