Tuesday, February 15, 2011

काश वक़्त को पीछे मोड़ पाते

काश वक़्त को पीछे मोड़ पाते,
छूटे रिश्तो को वापस जोड़ पाते,
छोटी - छोटी खुशियों का वो जहाँ,
आस-पास दिखता है अब कहाँ?
बिन बात का वो मुस्कुराना,
हर घडी दोस्तों का सताना,
ना कुछ सुनना, न सुनाना,
बस पापा से अपनी जिद मनवाना,
वो रात भर जाग कर पढना,
भाई से बे-मतलब लड़ना,
कभी घुटने कभी कोहनी का छिलना,
फिर भी होता था गैंग से मिलना,
उन यादो का यूँ गुदगुदाना,
दिल का यह यूँ कह जाना,
काश वक़्त को पीछे मोड़ पाते,
छूटे रिश्तो को वापस जोड़ पाते.

10 comments:

  1. बीते हुए वक़्त की सिर्फ यादें ही रह जाती हैं.

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  2. इस कविता को पढकर लगा आपने कविता लिखी नहीं बल्कि वो आकार लिखवा गयी भाव जग रहे हैं शब्द बोल रहे हैं सिर्फ लिखने के लिए मत लिखें जैसा आपने पिछली कविता में किया अपने आप को थोडा वक्त दें सोचे जो संवेदना के स्तर पर आप महसूस कर रहे हैं उसे आने दें शब्दों में ढलकर इस कविता में वो सब साकार होता स दिख रहा है जिंदगी इतनी आसान नहीं उसी तरह कविता भी नहीं शुरुवात छोटे विषय से की है बधाई लिखते रहें
    आभार

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  3. बेहतरीन प्रयास शुरुवात छोटी चीजों से धीरे धीरे भावनाओं को विस्तार दें आपने ठीक किया है
    बधाई

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  4. @ meraj and mukul sir..thanx a lot..!!

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  5. kayal kr dala...
    hm logo k pyar mein itni kmi hai ki aap beete dino ka shara cahrahi hai...

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  6. @ scooby...yaar tum logo ke pyaar me koi kami nahi hai usi trha un logo ke pyaar me bhi kam nhi...thnx...

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