Monday, October 3, 2011

आग की लपट में
शीतलता पा रहा होगा
जब ये तन
तुम अपनी आँखों को
आंसुओ से मत जलाना
सिसकेगी मेरी आत्मा
जब कोई और
मेरे नाम का आंसू
तुम्हारे चेहरे से पोछेगा
इस संसार की सीमाओ
में साथ
ना रह सके तो क्या
बन के हवा का
खुशबूदार झोका
महकाऊँगा मैं तुम्हारा जीवन
मेरी चिता की अग्नि को
अपनी आँखों में
याद बना कर बसा लेना
देह की चुटकी भर राख से
अपनी मांग सजा लेना
याद करना मुझे जब भी
अपने कमरे के किवाड़ खोल लेना
आऊंगा मैं तुमसे मिलने
बैठूँगा वैसे ही
तुम्हारा हाथ थाम कर
धूप जब लगेगी मेरे चेहरे पर
तुम अपनी ओढनी से वैसे ही ढक लेना
फिर तुम्हारी गोद में सर रख कर
सो जाऊंगा
आता रहूँगा यूँ ही
हर बार तुमसे मिलने
बस तुम मेरे मिलन की चाह
को अपने दिल से कभी ना मिटाना.

13 comments:

  1. Dastak ....lajabab rachana ji bahut sundar...bas tum mere milal ki chah ko aapne dil se kabhi nahi mitana.....awesome lines

    Dhananajay Mishra

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  2. ज़बरदस्त भावपूर्ण रचना जो दिल को छु गई आभार
    समय मिले तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  3. गहन भावों की सुंदर अभिव्यक्ति बधाई .....

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  4. Nice .

    ज़ुबां से कहूं तो है तौहीन उनकी
    वो ख़ुद जानते हैं मैं क्या चाहता हूं
    -अफ़ज़ल मंगलौरी

    जब से छुआ है तुझको महकने लगा बदन
    फ़ुरक़त ने तेरी मुझको संदल बना दिया
    -अलीम वाजिद
    http://mushayera.blogspot.com/2011/10/blog-post_04.html

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  5. बहुत सुंदर अभि‍व्‍यक्ति।

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  6. कल 05/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  7. wondeful lines..what more cud be said...speechless....

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  8. @ anonymous , aashish ahuja ji...thnx a lot

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  9. बहुत भाव पूर्ण अभिव्यक्ति ...सादर !!!

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  10. आग की लपटों में
    शीतलता पा रहा होगा
    जब ये तन....

    उत्तम लेखन... अद्भुत रचना...
    सादर बधाई...

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