Tuesday, October 4, 2011

मुझे चाहत है अब भी

साँसे चलती थी तब तुम ना थी
तुम्हारी चाहत थी
कब्र में दफ़न होने के बाद भी
चाहत हैं
तुम्हारे हाथ से छु कर
रखे दो फूलो की
जिनकी महक में मैं
तुम्हारी सुंगंध
को खुद में बसा लूँगा
आ जाना प्रिय
मैं फिर से देखूँगा
वो प्यार
जो मैंने अपने लिए
हर पल तुम्हारी आँखों में
महसूस किया
ना जानू तुम अपने एहसास
जान नहीं पाई या
कोई और बंधन तुम्हे रोका था
ये तो कह ना सकोगी तुम
प्यार ना था
क्या था वो
जब तुम अपने बालकनी में
कपडे सुखाने के बहाने
मेरा इंतज़ार करती थी
क्या था वो
जब तुम अपने रास्ते में
मुझे खड़ा देख कर
मुस्कुराती हुई
आगे बढ़ जाती थी
क्या था वो
जब जानते हुए की मैं ही हूँ
फोन उठा के
" कौन", " कौन", " कौन",
कहकर
अपनी मीठे स्वर का रस
मेरे कानो में घोल देती थी
क्या था वो
जब तुम बिना अपना नाम लिखे
वो खाली चिट्ठी मेरे घर भेज देती थी
क्या था वो
जब मेरे दरवाज़े के सामने से
गुजरते वक़्त
रुक कर मुझे खोजती थी
मैं बहार आ जाऊ इसलिए
अपनी पायल खनखाती थी
क्या था वो
जब मंदिर जाकर मेरे लिए
इश्वर से दुआ मांगती थी
हां! सुना है छुप छुप कर
मैंने तुम्हारी उन दुआओ को
छुप कर देखी हैं मैंने
तुम्हारी आँखों में
मुझे एक झलक
देख पाने की
बैचैनी
हां मैं जानता हूँ
तुम्हे प्यार हैं मुझसे
और जानता हूँ
समाज के डर से
कह ना पाई कभी
तुम्हारी इस ख़ामोशी को
सह पाने की मुझमे
और हिम्मत ना थी
पर चाहत है मुझमे अब
भी तुमसे मिलने की
प्रियतम! अब तुम
मंदिर के बहाने
घर से निकल कर
दो फूलो से महका
देना मुझे
मेरी कब्र पे
तुम्हारा स्पर्श
मुझे फिर से साँसे देगा
मुझे लगेगा जी रहा हूँ मैं
स्पर्श कर पा रहा हूँ
तुम्हारा प्यार
हां! मुझे चाहत है अब भी.

4 comments:

  1. सच्चे प्यार का भावपूर्ण और सटीक चित्रण....
    समय मिले तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  2. Bahut hi pyari kavita hai.

    Priyanka Gaun
    http://www.poemocean.com

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  3. चाहत और समर्पण यही तो है ...पर इस चाहत के एहसास को समझने वाले बहुत कम ही होते हैं।

    बेहद खूबसूरत कविता।

    सादर

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  4. @ pallavi ji, priyanka ji, yashwant ji aapko bht bht dhanyawaad...

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