Wednesday, October 5, 2011

वो पल अच्छे थे

वो पल अच्छे थे
जब तुम छत से
टपकते पानी को देख
मेरे सर पर अपना हाथ
रख लेते थे
शर्ट पहन के उसका
टूटा बटन
मुझसे टकवाते थे
रोज़ अपने हाथो से
मेरी मांग सजाते थे
मैं कौन सा रंग पहनू
मुझे बताते थे
मेरे हाथ की
अधजली रोटियाँ
स्वाद लेकर खाते थे
अपनी साईकिल पर बिठा
कर मुझे शहर घुमाते थे
घंटो साथ बैठ कर
मुझसे बतियाते थे
हर रात अपनी बाहों को
मेरा तकिया बनाते थे
मैं कभी नींद से जग जाऊ
सो तुम भी नहीं पाते थे
घबरा जाऊ जो मैं
मुझे गले लगाते थे
साथ बैठ कर मेरे
यादो की तस्वीर बनाते थे
मेरे बिना कुछ पल भी
अकेले रहने से सकुचाते थे
मेरी एक मुस्कान के लिए
सौ दर्द सह जाते थे
चंद सिक्को की तलाश में
तुम क्यूँ पड़ गये
वक़्त की दौड़ में
मुझे छोड़
क्यूँ आगे बढ़ गये
खड़ी हूँ मैं आज भी
उसी मोड़ पर
जानती हूँ लौटोगे तुम
जब जानोगे
वो पल ही अच्छे थे.

4 comments:

  1. इश्क, प्यार, मूहोब्बत के कुछ हसीन पल जिनकी यादों में अक्सर खो जाने के बाद दिल यही कहता है कि, यार वो पल अच्छे थे। :)
    समय मिले तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/10/blog-post_05.html

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  2. बदलते वक्त की तस्वीर , अच्छी रचना ।

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  3. आशाओं पर आधारित सुंदर रचना ,बधाई

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  4. भावपूर्ण रचना....

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