काश वक़्त को पीछे मोड़ पाते,
छूटे रिश्तो को वापस जोड़ पाते,
छोटी - छोटी खुशियों का वो जहाँ,
आस-पास दिखता है अब कहाँ?
बिन बात का वो मुस्कुराना,
हर घडी दोस्तों का सताना,
ना कुछ सुनना, न सुनाना,
बस पापा से अपनी जिद मनवाना,
वो रात भर जाग कर पढना,
भाई से बे-मतलब लड़ना,
कभी घुटने कभी कोहनी का छिलना,
फिर भी होता था गैंग से मिलना,
उन यादो का यूँ गुदगुदाना,
दिल का यह यूँ कह जाना,
काश वक़्त को पीछे मोड़ पाते,
छूटे रिश्तो को वापस जोड़ पाते.
बीते हुए वक़्त की सिर्फ यादें ही रह जाती हैं.
ReplyDeletebilkul sahi kaha aapna..!!
ReplyDeletebeautiful lines
ReplyDeleteइस कविता को पढकर लगा आपने कविता लिखी नहीं बल्कि वो आकार लिखवा गयी भाव जग रहे हैं शब्द बोल रहे हैं सिर्फ लिखने के लिए मत लिखें जैसा आपने पिछली कविता में किया अपने आप को थोडा वक्त दें सोचे जो संवेदना के स्तर पर आप महसूस कर रहे हैं उसे आने दें शब्दों में ढलकर इस कविता में वो सब साकार होता स दिख रहा है जिंदगी इतनी आसान नहीं उसी तरह कविता भी नहीं शुरुवात छोटे विषय से की है बधाई लिखते रहें
ReplyDeleteआभार
बेहतरीन प्रयास शुरुवात छोटी चीजों से धीरे धीरे भावनाओं को विस्तार दें आपने ठीक किया है
ReplyDeleteबधाई
@ meraj and mukul sir..thanx a lot..!!
ReplyDeletekayal kr dala...
ReplyDeletehm logo k pyar mein itni kmi hai ki aap beete dino ka shara cahrahi hai...
@ scooby...yaar tum logo ke pyaar me koi kami nahi hai usi trha un logo ke pyaar me bhi kam nhi...thnx...
ReplyDeletetremendous lines.
ReplyDelete@ rohit sir...dhanyawaad..
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