Wednesday, March 9, 2011

अपनी पिछली पोस्ट के बाद पता नहीं क्यूँ अचानक बहुत घबरा सी गयी. मन में एक डर बैठ गया  के लिखना मेरे बस की बात नहीं. मैं ऐसी कोशिश भी न करू. इस बीच कई बार इच्छा हुई की चलो, कुछ लिख कर देखते हैं, शायद लिख पाऊ.  पर "न लिख पाउंगी" ये डर लिखने ही नहीं दे रहा था. बहुत ही नेगटिव फीलिंग आ रही थी. बहुत उदास भी थी की अपने सपनो  को खुद उजाड़ रही हूँ. 
 
अभी भी बस यूँ ही उदास बैठी थी कि अचानक मेरी नज़र मेरी कलम पर गयी और कुछ समय के लिए उस पर ही टिक गयी. उसे देखते वक़्त लगा वो कह रही हैं कि " ईशा ! तुमने इतनी जल्दी हार कैसे मान ली, अभी तो तुम्हे मेरे साथ मिलकर बहुत कुछ लिखना बाकी हैं, यूँ हार मत मानो, फिर से लिखना शुरू कर दो. अच्छे बुरे कि चिंता किये बिना बस कुछ लिख दो."  मुझे भी एहसास हुआ कि " मैं नहीं लिख सकती" इतनी छोटी सी सोच के पीछे मैं अच्छा लिखने के सपने को सच करने कि कोशिश नहीं छोड़ सकती. फिर क्या, मैंने कलम उठाई और पिछले तीन-चार दिनों से न लिख पाने का जो दर्द महसूस कर रही थी,इसको ही कागज़ पर बयां कर दिया. इस दर्द कि पीड़ा बहुत अधिक  थी. मुझे अब भी नहीं पता के अपनी बीते चार दिनों के दर्द को मैं शब्दों में पिरो पा रही हूँ या नहीं,ये भी नहीं पता के जो लिख रही हूँ वो क्यूँ लिख रही हूँ, इसका उद्देश्य क्या हैं, पर इन सबसे ऊपर एक और चीज़ है वो है आत्मसंतुष्टि. मैं चाहे जैसा भी लिखू, पर लिखते लिखते मुझे पता पड़ रहा हैं के मैं खुद के करीब आ रही हूँ. मुझे अब ये पता चलने लगा हैं कि मुझमे क्या कमियाँ हैं, अब जो कोशिश करनी हैं वो इस बात कि इन कमियों को दूर कैसे किया जाए. 
 
टेढ़ी मेढ़ी लकीरे खींचनी तो शुरू कर दी हैं पर अभी कोई तस्वीर बनती नहीं दिख रही हैं पर मुझे अपने आप को व्यक्त कर के जो संतुष्टि मिल रही हैं उससे अपनी लेखनी के लिए एक बात तो तय कर सकती हूँ कि भले ही मेरा लिखना आप लोगो को निरुद्देश्य लगे पर मेरे लिए ये निष्फल नहीं हैं...मुझे जो आनंद और सुकून मिलता हैं वो शायद मेरे लिखने के आदत को बनाये रखने के लिए पर्याप्त हैं..

6 comments:

  1. लेखनी और आपका साथ हमेशा बना रहे है इसी दुवा की साथ
    लिखती रहें आभार

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  2. मैं समझ सकता हूँ कि कभी कभी ये नेगेटिव फीलिंग आ ही जाती है. मेरे साथ भी कई बार ऐसा होता है लेकिन दूसरों की नज़रों में आप चाहे जितना अच्छा लिखें या खराब लिखें आप के खुद के लिए 'लिखना' एक ऐसा नशा बन जाता है कि चाह कर भी यह नशा छूट नहीं पाता.
    इसलिए मेरी कामना है कि आपकी लिखने की आदत बनी रहे अगर आपके लिए न सही तो उनके लिए जो आपका लिखा पढ़ना पसंद करते हैं.

    शुभकामनाओं के साथ !

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  3. @ mukul sir,yashwant ji...aap dono ki shubhkaamnaao ke liye dhanyawaad..!

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  4. बस यही सोच होनी चाहिए।
    दूसरे क्‍या समझेंगे, क्‍या कहेंगे ये सोचने में तो गाडी छूट जाएगी।
    जो भी करो खुद के लिए करो, लिखो भी खुद के लिए।
    और जब वह‍ लिखा सार्वजनिक होगा तो किसी न किसी को अच्‍छा लगेगा।
    शुभकामनाएं आपको आपकी कलम बिना रूके, चलती रहे और सृजन होता रहे।

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  5. good yaar ! keep going bas likhli raho... kaha jae to lagi raho isha!!

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  6. डरने की कोई बात नहीं. असल चीज है passion.
    अच्छी पोस्ट है.

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