Monday, October 3, 2011

आग की लपट में
शीतलता पा रहा होगा
जब ये तन
तुम अपनी आँखों को
आंसुओ से मत जलाना
सिसकेगी मेरी आत्मा
जब कोई और
मेरे नाम का आंसू
तुम्हारे चेहरे से पोछेगा
इस संसार की सीमाओ
में साथ
ना रह सके तो क्या
बन के हवा का
खुशबूदार झोका
महकाऊँगा मैं तुम्हारा जीवन
मेरी चिता की अग्नि को
अपनी आँखों में
याद बना कर बसा लेना
देह की चुटकी भर राख से
अपनी मांग सजा लेना
याद करना मुझे जब भी
अपने कमरे के किवाड़ खोल लेना
आऊंगा मैं तुमसे मिलने
बैठूँगा वैसे ही
तुम्हारा हाथ थाम कर
धूप जब लगेगी मेरे चेहरे पर
तुम अपनी ओढनी से वैसे ही ढक लेना
फिर तुम्हारी गोद में सर रख कर
सो जाऊंगा
आता रहूँगा यूँ ही
हर बार तुमसे मिलने
बस तुम मेरे मिलन की चाह
को अपने दिल से कभी ना मिटाना.

Wednesday, September 14, 2011

पढो ज़रा...

listen ज़रा..
  कल १३ सितम्बर २०११ का दिन मेरे और मेरे क्लास ( एम.जे.एम.सी. ३    सेमेस्टर, लखनऊ विश्विद्यालय ) के सभी स्टुडेंट्स के लिए बहुत ही  महत्वपूर्ण था. कल हम सबको मुकुल सर के सहयोग से अपनी रचनात्मकता को लोगो के सामने प्रस्तुत करने का मौका मिला. ये प्रस्तुतीकरण हम सबने एक रेडियो इवेंट के ज़रिये किया जिसका नाम था listen ज़रा....

इस प्रोग्राम में मुख्य अतिथि के रूप में हमारा साथ  प्रो.ए.के.सेनगुप्ता, डॉ.आर.सी.त्रिपाठी, प्रो. राकेश चंद्रा, प्रो.मनोज दीक्षित, और रेड एफ एम के मशहूर आर जे आमिर ने दिया. आर जे आमिर की उपस्थिति ने सभी स्टुडेंट्स को जोश से भर दिया था. अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर के इवेंट का शुभ आरम्भ किया. 
 
इसके बाद अतिथियों ने स्टुडेंट्स की बनायीं हुई सीडी का विमोचन किया.हमारे एंकर्स ने अपने चुटीले अंदाज़ में प्रोग्राम को आगे बढाते हुए उस सीडी में कैद हम सबकी आवाजों को वहा बैठी जनता तक पहुचाया. स्टुडेंट्स ने गीतों भरी कहानी में जिंदगी के सफर के अलग अलग आयामों - बचपन, दोस्ती, मन, तनहाई, मौत, आंखें, चेहरा, रात, सावन  को  पेश किये. साथ ही  रेडियो नाटक के ज़रिये हमने अपने समाज की व्यथा को लोगो तक पहुचाया. हमारे काम को सुनने के बाद अतिथियों ने उसको सराहा भी और साथ ही कमिया भी बताई. 

फीडबैक बोर्ड
आर जे आमिर ने जर्नालिस्म स्टुडेंट्स के कुछ सवालों का भी जवाब दिया और बताया की एक अच्छा आर जे बनने के लिए आत्मविश्वास, शब्दों का जाल और तुरंत जवाब देने की क्षमता होनी चाहिए. अपने सहज अंदाज़ में स्टुडेंट्स से बात कर के उन्होंने सबके बीच एक अलग जगह बना ली.

इवेंट कब शुरू होकर कब अपने अंतिम पड़ाव पे आ गया, पता ही नहीं चला. सभी ने पूरे इवेंट को खूब एन्जॉय किया. अतिथियों ने फीडबैक बोर्ड पर अपने फीडबैक दिए जिसे पढ़ कर स्टुडेंट्स का मनोबल बढ़ा.

स्टुडेंट्स की मस्ती
इवेंट के ख़त्म होने के बाद शुरू हुई हम स्टुडेंट्स की मस्ती. हम सब मिलकर खूब झूमे, नाचे, चिल्लाये, या यूँ कहे कि हमने अपने इवेंट की सफलता का जश्न मनाया. अगर मुकुल सर का सपोर्ट नहीं होता तो ये इवेंट कभी भी सक्सेसफुल नहीं बन पाता.
our गुरु- मुकुल सर (center)

इस पूरे इवेंट के दौरान हमने बहुत कुछ सीखा- ग्रुप में काम करना, अपने पर विश्वास रखना, हौसला बनाये रखना, समय के पाबंद रहना...ये सब सीख पाए मुकुल सर के कारण. अगर वो इस तरह का कोई इनिशीएटिव ना लेते तो हम स्टुडेंट्स इस खूबसूरत अनुभव से कभी न गुज़र पाते और इन बातो को ना सीख पाते.

Tuesday, August 9, 2011

श्रृंगार कर के बैठी, खूबसूरत लगती है वो नारी,
अपने हक के लिए आवाज़ उठा दे,
संस्कारहीन कह दे दुनिया सारी,
धैर्य देखा है सबने,
दहक के दर्शन बाकी हैं,
जल जाएगी वो इसमें,
या दुनिया का जलना बाकी हैं,
अपनों की खुशियों की महक से खुश रही,
अस्तित्व बोध के लिए लड़ना बाकी हैं,
हर मोड़ पे अंगारे बिछाए अपनों ही ने,
अपने लिए खूबसूरत रास्ता बनाना उसका बाकी हैं,
जन्मदात्री तो बन गयी वो जीवन की,
अपने जीवन के निर्णय स्वयं लेना अभी बाकी हैं,
स्त्री रूप की पहचान बन गयी,
मनुष्य रूप में पहचान बनाने की आस अभी बाकी हैं,
डटी है वो सबके समक्ष, अकेले में आंसू बहाए,
साथ देना आप भी, लड़ते लड़ते कही टूट ना जाए.

Sunday, July 31, 2011

कभी खुद से पहचान,
कभी अनजान हूँ मैं,


कभी सपनो से पूर्ण,
कभी अधूरा ख्वाब हूँ मैं,


कभी उडती तितली,
कभी टूट चुके पंख वो परिंदा हूँ मैं,


कभी संगीतमय बांसुरी,
कभी बिखरी लय ताल हूँ मैं,


कभी हर जवाब,
कभी खुद के लिए सवाल हूँ मैं.

Sunday, July 24, 2011

पास अपने आना चाहती हूँ


दूर कहीं सबसे जाना चाहती हूँ,
खुले आसमां के तले बैठना चाहती हूँ,
जहा हवा की बयार मन को बहलाए,
सागर की लहरें दिल को छू जाए,
बस चिड़ियों की चहक,फूलो की महक हो जहा,
कोई पहचाना चेहरा ना हो वहा,
मुझे ना खबर हो जहा दिन और रात की,
बातें ना हो जहा झूठे जज़्बात की,
रिश्तो के नाम पे जहा ठगी ना हो,
खंज़र किसी के दिल पे प्यार की लगी ना हो,
जहा मैं अपनी हसी सुन पाऊ,
अपने अश्को की बूँद गिन पाऊ,
अपनी साँसों की महक पाना चाहती हूँ,
दूर सबसे पर पास अपने आना चाहती हूँ,
दूर कहीं सबसे जाना चाहती हूँ

Monday, July 18, 2011

लिखने बैठे ख़ुशी,
हर बार कलम
तन्हाई लिख गई,
बेवफा ना थे हम कभी,
उनकी नजरो में अपनी बेवफाई दिख गयी,
मेरे उनकी ओर बढ़ते कदम ना देखे उन्होंने,
हमारे बीच की उन्हें पर गहराई दिख गयी,
अलविदा कह कर चल दिए वो,
जैसे जानते ही ना थे,
उनके जाने के बाद
हम जैसे खुद को पहचानते ही ना थे,
देखा एक रोज़ खुश उनको
हम खुद को पहचानने लग गये,
तन्हा हैं फिर भी हम,
अपने को संभालने लग गये.

Thursday, July 14, 2011

काश दिल में भी एक दिल होता

काश दिल में भी एक दिल होता,
पनप सकते उसमे भी कुछ एहसास,
दिल किसी का तनहा न होता,
हो सकती दिल की दिल से बात,
एक दिल उदास होता,
दूसरा उसपर खुशियाँ लुटाता,
एक टूट भी जाता दर्द से कभी,
दूसरा मरहम लगाता,
खुश होते दोनों
मिलकर जश्न मनाते,
साथ हँसते कभी,
कभी दिल भर के खिलखिलाते,
काश दिल में भी एक दिल होता,
पनप सकते उसमे कुछ एहसास.