Saturday, March 12, 2011

चाय की चुस्कियां और मीठे पल


दोस्तों का साथ और चाय की चुस्कियां....ये दोनों अगर साथ  हो तो समय ऐसे भागता है जैसे फ़ॉर्मूला- कार.. चाय की चुस्कियो के साथ बाते बनाने का जो सिलसिला शुरू होता है वो ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता..हम सारे दोस्त जब भी साथ होते हैं तो चाय की चुस्कियो के साथ अपनी ज़िन्दगी के वो पल बाटते हैं जिन पलो में हम एक दुसरे से नहीं मिले थे. कभी कोई अपनी स्कूल के शरारते, तो कभी कोई अपने क्लास टीचर पर जो क्रश था वो बताता हैं, कोई अपने एग्जाम में चीटिंग करने का तरीका तो कोई अपना भोलापन बताता हैं. सभी अपनी पुराने पलो को एक दुसरे के साथ बाट कर खुश होते हैं..

आज मैं शर्मा अंकल के टी-स्टाल के पास से गुज़र रही थी तो वह कुछ दोस्तों का जमावड़ा ठहाके लगा रहा था. उनके ठहाको की आवाज़ सुन कर मैं मिनट के लिए वही रुक गयी और उनकी बाते सुनने लगी. वह शर्मा जी के साथ उनके दो दोस्त थे जो चाय के नशे में डूब कर पूरे विश्व की धज्जियां उड़ा रहे थे. ऐसा लग रहा था मानो अभी ये तीन मिलकर देश दुनिया की सारी गंदगी साफ़ ही कर देंगे.

उनकी बहस बेमतलब में जो मुद्दा गरमाया हुआ था वो था देश में बढती महंगाई और भ्रष्टाचार.इस पर सबसे पहले शर्मा जी मनमोहन और उनकी सरकार को कोसते हुए बोले " अरे भाई ! ये मनमोहन का ही कमाल हैं, दिखने में जितना सीधा और ईमानदार हैं, असल में उतना बड़ा चोर हैं, इतने घोटाले हुए हैं उसके राज में की अब तो जी उब गया हैं और ये आसमान छूती  हुई महंगाई से तो दो वक़्त की रोटी के भी लाले पड़ गये हैं. " शर्मा जी का इतना  बोलना ही था की चड्ढा जी गुस्सा गये और तपाक से बोले "इसमें मनमोहन जी क्या कर लेंगे, मुझे तो उनकी इमानदारी पर कोई शक नहीं हैं. ये तो मीडिया है जिसने उनके नाम को ज़बरदस्ती इतना उछाल दिया हैं, और महंगाई कोई उनके कारण थोड़े ही बढ़ रही है. ये खाद्य उत्पाद  महंगे इसलिए हो रहे है क्यूँ की लोगो की आय बढ़ रही हैं साथ में क्रय शक्ति, और चीजों की मांग तो महंगाई तो बढ़ेगी ही."  उसके बाद तिवारी जी बोल पड़े " मनमोहन कोई दूध के धुले भी नहीं हैं, देखा नहीं प्रेस कांफ्रेंस में किस तरह बोला की मैं दोषी हूँ पर उतना नहीं जितना मीडिया बता रही हैं." इसी तरह ये बहस चलती रही और उसके साथ साथ शर्मा जी की चाय की दुकान भी. वो तीनो ही  रूपये की चाय में इस तरह मज़े ले रहे थे की जैसे कोई कुबेर का खजाना हाथ लग गया हो. पीछे की तरफ जो नौकर चाय पर चाय बना रहा था वो दूध कम और पानी ज्यादा मिला कर सबकी चाय को मजेदार बना रहा था.  मैं वह खड़े उनके तर्क वितर्क सुन ही रही थी की तभी शर्मा जी का मोबाइल बजा. वो फोन पर किसी से कह रहे थे " उस साले की औकाद ही क्या है! १००० का नोट उसकी जेब में रखो वो साला कोई गाडी नही रोकेगा, सबको जाने देगा. और तब भी माने तो बताना उसके हेड को मैं जानता हूँ, उससे दो तीन गालिया खायेगा तो लाइन पर जाएगा." मुझे नही पता शर्मा जी किससे बात कर रहे थे, पर उनके फ़ोन आने से पहले वो जिस तरह मनमोहन जी को कोस रहे थे उससे तो लग रहा था की वो खुद सच्चाई और इमानदारी की मूरत हैं.

उनकी बाते सुनने के बाद लगा के चाय की चुस्कियो के साथ ज़िन्दगी के हसीं पल ही नहीं बाटे जाते बल्कि इसके साथ इंसान अपना असली चहरा भी दिखाता हैं. चाय में भी कुछ वैसा ही नशा हैं जैसा शराब में हैं. जैसे शराब पीने के बाद इंसान अपने असली रूप को छुपा नहीं पाता वैसे ही चयेडी ( चाय के चरसी) भी चाय के बाद अपना असली रंग दिखाना शुरू कर देते हैं. खैर...जो भी हो, अगर हम सब फालतू की बहस में ना पढ़ कर खुद में ही सुधार कर ले तो ये सभी समस्याएं खुद ही  खत्म हो जाएँगी.

6 comments:

  1. तो आप की कलम फिर चल पडी बस निरंतरता बनाये रखें
    अगली पोस्ट के इन्तिज़ार में

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  2. thnak you sir...!! ummid karti hu aap ke dikhaaye raaste par chalti rahungi..!

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  3. ".....चाय की चुस्कियो के साथ ज़िन्दगी के हसीं पल ही नहीं बाटे जाते बल्कि इसके साथ इंसान अपना असली चहरा भी दिखाता हैं."

    Extreemly Agree with you.

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  4. @ neha..wo to tu bhi jaanti hi hai q faydemand hai.. ;P
    @ yashwant ji..aapki sehmati ke liye dhanyawaad..!

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  5. खूब लिखा है और जैसा मुकुल जी कह रहे हैं बस वैसा की करें. उम्दा लेखनी है.

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