Tuesday, March 15, 2011

आँखे पढ़ सकता हो जो,
उससे दर्द छुपाने की कोशिश बेकार हैं,
ख़ामोशी की आवाज़ सुन सकता हो जो,
उससे बे-मतलब महफ़िल में बतियाना बेकार हैं,
धड़कन के हलचल महसूस कर सकता हो जो,
उखड्ती साँसों को आहें बताना बेकार हैं,
आंसुओ की पहचान कर सकता हो जो,
तिनका जाने का बहाना बेकार हैं,
मुस्कुराने की अदा पहचानता हो जो,
खिलखिला के मुह घुमाना बेकार हैं,
तेरे चेहरे से तेरे दिल को समझ सकता हो जो,
उससे हाल-ए-दिल छुपाना बेकार हैं. 
 
( ये कविता मेरे उन सभी दोस्तों के लिए जो अपने प्रोब्लम्स को छुपाने की नाकाम कोशिश कर के खुद को बेवकूफ बनाते हैं. आशा करती हूँ की वो सभी नालायक दोस्त अगली बार से ऐसी बेवकूफियां नहीं करेंगे.)

6 comments:

  1. तेरे चेहरे से तेरे दिल को समझ सकता हो जो,
    उससे हाल-ए-दिल छुपाना बेकार हैं.
    अपनों से कुछ छिपाना भी बेकार है , बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई

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  2. @ sunil ji thanx.
    @ nehu..babu tu to jaanti hi hain...hehehe..!

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  3. Chhupane ke baad bhi aapne unka man pdh hi liya.... bahut khoob

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  4. @ monika ji, yashwant ji...shukriya..!

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