Thursday, March 24, 2011

सागर की लहर एक खेल हैं,
क्या किनारों से टकरा कर चोटिल नही होती?

आँखों को काजल सजाता हैं,
क्या सजी आँखें बोझिल  नहीं होती?

चेहरा अगर सूखा है,
क्या रूमाल अश्को से भीगा नहीं होता?

जो चोट दिखती हैं दवा है उसकी,
क्या अदृश्य चोट  का मरहम नहीं होता?

4 comments:

  1. क्या भाव हैं..बहुत खूब!

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  2. "चेहरा अगर सूखा है,
    क्या रूमाल अश्को से भीगा नहीं होता?"

    क्या बात है...
    बहुत अच्छा लगा पढ़ कर!

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