Sunday, October 10, 2010

बातचीत

आज दिल ने पूछा हँसीं से,
क्यूँ नहीं दिखती तू लबो पर,
हँसीं खिलखिलाई और बोली,
खुद पूछो अपने से,
तुमने ही मेरा साथ छोड़ दिया,
कहते हो मैंने रास्ता मोड़ लिया,
तुम्हारे लबो से दिल तक जो रस आता था,
तुम्हारे अश्को का दर्द भी भूले जाता था,
आज बैठी हू  मैं एक कोने में,
रोती हू तुम्हारे रोने में,
कोशिश करती हू की फिर मुस्कुराऊ तुम्हारे लबो पर,
टीस बताती है की रहती हू तुम्हारे गमो पर,
तुम्हारे गमो में भी तुम्हारे साथ हू,
मुझसे ना कहना की मैं अनाथ हू,
आयेगी जब ख़ुशी तब मुस्कुराऊँगी,
उस वक़्त तुम्हारे हर आंसू को रुलाऊँगी |
 

2 comments:

  1. वाकई मन के उदगारों को प्रकट करने का सशक्त माध्यम कविता ..... यह तो अनूठी अभिव्यक्ति है आपके विचारों की ......!!!

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